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{ ४३६) बीजक कबीरदास । भ कहिये आकाश शून्यको भा कहिये भ्रमणको । सो हे जीव ! भ भरिबों कहाँव है, डेराबे धोखा या ज्यहि मतन में फल शून्य है तेही मतनमें तें भ्रमण कर रही है कहे सो विचार को भ्रमण तेरे पूरिरहो है, सो तोको गुरुवा लोग साहबते डेरवाइ दियो औ धोखा में लगाइ दियो सो तोको डरही डर सर्बत्रदेखो पैरै है जब अवै कहे जन्महोइहै तबहूँ भनेर आँखैहै कहे डरैमें अवैहै औ जब जाइहै तबहूं भभरे कहे डरैमें जाइहै वोहू नानाप्रकारके दुःख होइहैं । सो या भभरे ते नियरे जे साहबहैं ते दूरिद्वैगये । सो भभाने घेखा ब्रह्मके भ्रमणवाले तेई कहहैं सो हे भाई! सुनो भ्रमैते विहे भ्रमते जाइहै महाप्रलयमें लीनहोइहै पुनिसृष्टि समयमें संसारमें आये है । भ आकाशको औ भ्रमणको कहैहैं तामेंप्रमाण ॥ * नैक्षत्रं भं तथाकाशेभ्रमणेभः प्रकीर्तितः । दीप्तिभाभूस्तथाभूमिभर्भयेकथिता बुधैः ॥ २५ ॥ ममा से ये मर्म न पाई । हमरेते इन्ह मूल गॅवाई ॥ ममा मूल गहल मन मानामिर्मी होइ सो मर्महि जाना॥२६॥ म कहिये लक्ष्मीको मा कहिये बन्धन को । सो हे जीव हैं लक्ष्मीके बन्धन में परिकै ऐश्वर्य में परिकै साहब को मम्मे तू न पा हमरेते कहें यह सब हमारहै कहे यह बिचारते यह सब साहब को पहन जानेइहै आपनमानते इन्हमुल जे साहब हैं तिनको गवाँइदियो सो हे ममा ! मायाबन्धनमें बँधो जीव ! जौन तेरमन में माना है ताहीको मूलमानि गहिलीन्हहै सो रौं मूल न पायोकाहे ते कि मर्मीकहे जो कोई साहबको मम्र्मीहाइ है सोई साहव के मर्मकों जानैहै । म लक्ष्मीको औ बन्धनको कहै हैं तामें प्रमाण ॥ * मैः शिरश्चन्द्रमा वेधा मा च लक्ष्मीः प्रकीर्तिता । मश्च मातरि मानेच बन्धने मः प्रकीर्तितः ॥२६॥ यया जगत रहा भार पूरी । जगतहु ते यया है दूरी ॥ यया कहै सुनौ रे भाई । हमरे सेये जय जय पाई ॥२७॥ १-भ’ भै उक्षत्र और आकाशको,भः धूमनेकोःभाः शोभाकोभी डरकोकहते हैं। २-‘म’ शिर, चन्द्रमा, ब्रह्मा, माता, तौल, और बांधनेक कहते हैं ‘मा लक्ष्मीको कहते हैं।