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चौंतीसी । (४३५) फफा फल लागो बड़ दूरी । अखें सतगुरु देइ न तूरी॥ फफा कहें सुनुहुँरे भाई । स्वर्ग पताल कि खवर न पाई२३ | फ कहिये फळको फा कहिये निष्फल भाषण को । सो हे जीव! जौने फलको भाषण करेहै कि ऐसोफळ होइगो सो या तेरो भाषणो निष्फल है फल ने साहब हैं ते बहुत दूर हैं सतगुरु जे जे साहव को जाने हैं तेईचाखै हैं व फल के तूरिकै काहूको नहीं देइहैं काहे ते वे साहब मन बचन के परे हैं आपही ते आप जाने जाइ हैं आपनी दई इन्द्रि ते आप देखे जाइहैं सतगुरु ने बतावै हैं ते साहबके प्रसन्न होबेकी राह बतावै हैं सो हे भाई ! लोकनमें फल की चाहकरिकै निष्फल के भाषणवाले ने गुरुवा लोगहैं ते कहै हैं कि स्वर्ग पाताल में साहब की खबर हमहूं कहूँ नहीं पाई अर्थात् साहब हई नहीं हैं । के फल को औ फा निष्फल भाषण को कहै हैं तामें प्रमाण ॥ “झंझावातेफकारः स्यात्फःफलेऽपिप्रकीर्तितः । फकारेऽपि च फःप्रोक्तस्तथा निष्फळभाषणे ॥२३॥ वबा बर बर कर सब कोई। वर वर किये काज नहिं होई ॥ बवा बात कहै अर्थाई। फलके मर्म न जानेहु भाई॥२४॥ ब कहिये बरुणको बा कहिये घटको । सो बरुण जलके भीतर रहै हैं ऐसे हे जीव! तुहूं बाणी के भीतर हैकै घटकी नाई भकभकाइ बरबर सब कोई करौहौ सो बरबर के किये काजनहीं होइ है अर्थात् साहब नहीं मिलैहैं। सो हे बबा ! घटकी नाई भकभकान वारे बात तो बहुत अर्थायकै कहै हैं परन्तु हे भाई ! छोकनके फलको मर्म नहीं जानी है। किं वा फळ भोगकर कछुदिन में गिरही परेंगे । ब बरुणको औ कलशको कहै हैं तामें प्रमाण॥ “प्रचेता वैः समाख्यातः कलशो में उदाहृतः । ॥ २४ ॥ भभा भर्म रहा भरि पूरी । भभरेते है नियरे दूरी ॥ भभा कह सुनौ रे भाई। भभरे ओवै भभरे जाई ॥२६॥ १-फ' ऑधी, फल, फ अक्षर और, व्यर्थभाषीको कहते हैं। २-'ब' वरुण और कलशको कहतेहैं ।