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(४३४) बीजक कबीरदास । गतिक; राह ताको छोड़िकै ऊध्र्व कहे साहबके इहां जाबेकी नोराहहै तामेमन लगाउ अपामेटिकै कहे जो आपन सब मानि राख्यो है सो सवसाहबको मानिकै औ आपनेहूंको साहबको मानिकै प्रेमको बढावै । ध बंधनको औ धाता को कहै हैं तामें प्रमाण ॥ “धो बंधने धनाध्यक्षे धाता धीर्मरुतावपि ॥ २० ॥ नना वो चौथेमें जाई । रामको गद्दह है खर खाई ॥ नाहछोड़ि कियेनर्कबसेरा। नीचअजौंचितचेतुसबेरा॥२१॥ न कहिये गुणको औ ना कहिये निंदाको सो हेजीव ! तैत्रिगुण में बँधिकै निन्दारूप द्वैगयो अर्थात् निंदा करिबेलायक हैं कैमन बुद्धि चित्तमें अहंकार जो चौथ तामें परिकै अर्थात् आपने को ब्रह्ममार्निकै रामको तें वैकै अर्थात् तेंतो श्रीरामचन्द्रको है परन्तु अवरे २ में गदहा है खर खात फिरै है । अर्थात् झूर ज्ञानमें परोहै सो नाह ने परमपुरुष श्रीरामचन्द्र हैं तिनको छोडिंकै नरकमें बसेराकियो सोहेनीच! अबै सबेरो है अनहूँ चेतु। न गुणको औ निन्दाको कहै हैं तामेंप्रमाण ॥ “नैकारः स्याद्भुणे चंदेदुःस्तुतौ च प्रकीर्तितः ॥२१॥ पपा पाप करै सव कोई । पापके धरे धर्म नहिं होई । पपा कहै सुनहु रे भाई । हमरेसेये कछू न पाई ॥२२॥ प कहिये श्रेष्ठको पा कहिये रक्षकको । सो हेनीव ! तँ साहबका वैकै और औरे देवतनको श्रेष्ठ मानै है औ रक्षक माने है । सो पापई केरै है पापके किये ते धर्म नहीं होयगो अथाव और देवतनके किये तेरी रक्षा न होयगी काहेते पपा जैहैं श्रेष्ठ रक्षक जिनको तें मानै है तेई कहै हैं “हे भाई ! सुनो हमारे सेये कछु न पावैगो, मुक्तिं हमारी दनि नहीं दैजाइ मुक्ति श्रीरामचन्द्रहीं की दुई दैजाइ है तामें प्रमाण ॥ “मुक्तिदाता सर्वेषां विष्णुरेव न संशयः । विष्णुश्रीरामचन्द्रको नामहै सो हमारे सर्वसिद्धान्तमें लिखे है । प श्रेष्ठको औ रक्षकको कहेंतामॅप्रमाण ॥ ‘‘पैरमे पःसमाख्यातो पापाने चैव पातरि ॥ २२ ॥ १-‘ध’ बाँधना, कुबेर, ब्रह्मा बुद्धि और वायुको कहते हैं । २-‘न' गुण, चन्द्रमा और निन्दामें कहाजाता है । ३-‘प' श्रेष्ठकों, ‘पा' पीने, रक्षाकरनेवालें और पीनेवालेको कहतेहैं।