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चौंतीसी । (४३१) डडा डर कीन्हें डर होई । डरहीमें डर राखु समोई ॥ जो डर डरै डरै फिरिआवडरहीमें पुनि डरहि समावै॥१४॥ एक ड कहिये ध्वनिको औ डा कहिये त्रासको सो मायारूप बाणीकी त्रास कहे डर सो याडर तेरेकीन्हे ते होइहै अर्थात् ये मिथ्या हैं तेंहीं बनायलियो है समोइदे । कैसेमिटै सो जिनको औं डरै है । बिषयन को तिनको इन्द्रिनमें समोइदे,इंद्रिनको डेरै है सोमनने महाडरहै तामें समोईद, मनको चिन्तन्मात्रब्रह्म में समोइदे या रीतिते डरको डरमें समाईकै नैं फिरिआउ साधनकरि साहबको जानु । डकार ध्वनिको औ त्रासको कहै हैं तामें प्रमाण ॥ “डकारः शंकरे त्रासे डकारो ध्वनिरुच्यते ॥ १४ ढढा ढूढ़त ई कत जाना । ढीगर डालहि जाइ लोभाना ॥ जहां नहीं तहँसब कछु जानीतिहां नहीं जहँ ले पहिचानी१८ | कहिये बाणीको ढा कहिये निर्गुण ब्रह्म को । सो हे जीव ! बाणीमें लगिकै निर्गुण ब्रह्मको ढूँढत तोको कहां जानाहै अर्थात् उहाँ कुठुनहीं है तैंतो साहकों है वा ढीगर जापुरुषके है तौनेको ढोल बाजा बानीरूप पानी तौनेमें लोभाने तैनाई अर्थात् या बाणीरूप ढोलबाजा है अहंबझ बुद्धि बतावै है सो दूरिकों ढोल सुहावन है वामें कछुनहीं । देशकालबस्तु परिच्छेदते शून्य है हाथ एक न लगैगो । सो हे जीव ! जहांकह जौने साधनमें साहबनहीं हैं तौनेन साधन को हैं सबकछु जानिलीन्हे है । सो जहां नहीं कहे जहां माया ब्रह्म ये एक हू नहीं हैं। तहा साहबको तै पहिचानले । ठ निर्गुण औ ध्वनि को कहै हैं तामें प्रमाण ॥ “ ढकारकीर्तितो दुका निर्गुणेच ध्वनावपि ॥ १५ ॥ णणा दूर बसौ रे गाऊं। रे णणा टूटै तेरे नाऊं ॥ सुये येते जिय जाही घना। मुये यतादिक केतिक बना १६ | ण कहिये निष्फलके णा कहिये ज्ञानको । सो हे जीव ! या धोखा ब्रह्मको ज्ञान तेरो निष्फल है या ज्ञानते साहब न मिलेंगे साहब को गाउंनो साकेत हैं। १-‘ड' श्री महादेव भयं औरै शब्द में कहागया है । २-‘ट' ढका गुणरहित और शब्दको कहतेहैं ।