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| ( ४३० ) | बीजक कबीरदास । टटाविकट बात मन माहीं ।खोलि कपाट महलमें जाहीं॥ रहेलटपटेजुटतेहिमाहीं।होहिंअटलतेहिकतई न जाहीं१२॥ | एक ट कहे जो नाभीमें रेफकी ध्वनि उठेहै औ दूसरो टाकहे जो सुरत कमलमें गुरुरकार ध्वनिकरै है । सोदून ध्वनि जामें होइँ सो टटाकहावैहै सोहेटटाजीव ! विकटवातकी जेबासना तेरेमन में तेई कपाट ताकेाखेलिकै दूनों रकारकी ध्वनि एक कै रामनामकी छइउ मात्रा जपत अर्थ बिचारत महल जो साकेत तहांको जाइ रहै । लटपटे कहे जैसे होय तैसे राम नाममें जुटिर हु तो साकेतमें जाई कै नैं अटलं है है। अथवा बिकट बासननको तेरे मन में टटाद्वै रहा है सो टटाको खोलिकै महलमें जाहे लटपटे.जौने संसारमें लटपट वैरहे है कहे नरक स्वर्गमें हैं गिरे उठे है स हैं साकेतमें जुटिरहु जे साकेत में जुटिरहे हैं कहे प्रवेश करिरहे ह तेई अटल हैरहै हैं उनके जनन मरणनहीं होय। वे कतहूं नहीं जाय हैं। टध्वनिकाकहैतामेंप्रमाण॥“टः पृथिव्यां च करके टो ध्वनौ च प्रकीर्तितः ॥१२॥ ठठा ठौर दूर ठग नीरीनितके निठुर कीन्ह मन धीरे ॥ जेहिटगठगसवलोगसयानासोठगचीन्हिठौरपहिचाना १३ ठ कहिये बृहद्ध्वनिको औ ठाकहियेचंद्रमंडलको । सो बृहहै ध्वनिकहे कीर्त्तिजिनकी तीनों तापके हरणहारे चंद्रमण्डलकी नाई ऐसे परमपुरुषपरले श्रीरामचन्द्र हैं तिनको ठौर दूर है । औ ठग जे मन सेनेरे है अथवा हेठइहा मसखरानीव साहबसों मसखरी करनवारो जाते जननमरण छूटै है वा साहबको ठौर दूर है । ठगजे मन बुद्धि चित्त अहङ्कार ते नेरे हैं । तें नित्यको निदुरहै यानो माया ताको ना धीरे करत भै सोकहे तेजकरते भये ऐसो जो ठग मन नै नसब सयाने लोगन को ठगतंभो तौने ठगमनको चीन्हिकै साहब के ठौरको पहिचान । अथवा ठग जे हैं गुरुवालोग ते साहबते छोड़ायकै और औरमें लगायो ते कहां तेरे मनको धीरे किये नाहीं किये । औ ठ बृहद्ध्वनिको औं चंद्रमंडलकाकहै हैं तामें प्रमाण । 'बृहध्वनिश्च ठः प्राक्तस्तथा चंदस्यमंडले' ॥ १३ ॥ १-‘ट' भूमि, करकपात्र और शब्दकरनेमें कहागया है । २-ठ' बड़े शब्द और चन्द्रमाके घेरेको कहते हैं।