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(४२८) बीजक कबीरदास । छोडिदे हे जीव ! चित्रकारी जो मन ताको चेतकरु वही तेरे स्वस्वरूप को . भुलाय दियोहै च चंद्रमा को चोरको केहैं ॥ चैवंद्रश्च समाख्यातस्तस्करे मास्करेमतः ॥ ७ ॥ छछा आहि छत्र पति पासाछिकि किन रहै छोड़ि सवआशा। मैं तोही क्षण क्षण समुझायाखसमछोड़िकसआपुर्वैधाया ८ छ कहै निर्मल जीव हैं आपने स्वरूपको भूलिकै साहबको भूलिगयो ताते छाकह छेदरू ही वैगयो तेरे स्वरूपकी क्षयद्वैगई सो तें तो छत्रपती जे परमपुरुष श्रीरामचन्द्र तिनको आहि तिनके पास जायकै ई सब नाना देवनकी आशाछोड्रिकै छकिरहुया बात मैं तोको क्षणक्षण समुझायो परन्तु तुमखसमजे साहब तिनको छोड़िकै तें काहेको जगत् में अपनप बँधाया।छनिर्मल को औ खेद छ को कहे हैं। तामें प्रमाण ।। ‘‘नि मैले छस्समाख्यातस्तरणि श्छः प्रकीर्तितः॥ छेदे च छः समाख्यातो विद्भिः शब्दशासने ॥ ८ ॥ जजाई तन जियतहि जारो। यौवन जारि युक्ति जो पारो ॥ घटहि ज्योति उजियारी करे।जो कछु जानि जानि पर जरै९ न कहिये वेगवंतको औं जा कहिये जघनको खो हे जीव ! वेगवारो जोमनहै सोई तेरो जघनहै ताहीते बागत फिरै है अर्थात् जननमरण होतरैहै । सो यातनको कहे मन रूप तनको औं जीत में कहे यही शरीरको साधनकरके जा रिदे मरेते न जरैगो दूसर शरीर देइगे। यौवन कहे युवाअवस्थाको जारिकै बयुक्तिको पारो कहे धारणकरो फिर वृद्धावस्थामें साधनकरिबेकी सामथ्य नहीं रहीहै ताते युवै अवस्थामें इन्द्रिनको विषय साधनकारि जारु कौनी तरहते नारु कि जो कछु पदार्थ जगत्में जानि राख्यो है ते जानिपरें कि जरिये अर्थात् मनको संकल्प विकल्प छूट जाई तबही ज्योति जो मनहै सोघटमें साहबकी ओर उनियारी करैहै । ज्योति मनको कहैं तामेंप्रमाण ॥ “जीवरू १-च' चंद्रमा सूर्य, और चोरको कहतेहैं। २-“छ' निर्मल, छेद, सूर्य और नावको कहते है। ..