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चौंतीसी। बिरळहै । ताके लखिबेको प्रकार हैं। कहै।हौं । अकार लक्ष्मणको स्वरूप उकार शत्रुघ्को स्वरूप मकार भरतको स्वरूप अर्द्धमात्रा श्रीरामचन्द्रको स्वरूप संपूर्ण प्रणव श्री जानकीजीको स्वरूप । यहि रीतिते जो कोई प्रणवको जानै सो बिरला है ! कौनी रीतिते जपकरै त्रिकुटीमें अकार कंठमें उकार हृदय में मकार नाभिमें अर्द्धमात्रा गैबगुफामें संपूर्ण प्रणव ऐसो एक एक मात्राको अर्थ विचारत घंटानादकी नाई जप करनवारो बिरला है साहबमुख यह अर्थ हम दिग्दर्शन करादिया है और विस्तार ते अर्थ हमारे रहस्य त्रयग्रन्थमें है और सब जगतमुखअर्थ है ॥ १ ॥ कका कमल किरणिमें पावै।शशि विकसितसंपुटनहिंआवै॥ तहां कुसुम्भ रंग जो पावै । औगह गहकै गगन रहावै ॥२॥ क कहिये सुखको सो कका कहे सुखको सुख जो साहब तिनको किरणि जो अर्द्धमात्रा ताको नाभि कमलमें ध्यान करि जीव जनै । औ शशि जा चंद्र नाड़ी तौनेको अमृत सीर्चिकै विकसित कियर संपुटित न होनपावै । औ तैहैं कुमुंभ रङ्ग जो प्रेम ताको पावै तौ अगह जो साहब जे मन वचन करिके नहीं गहे जाइँ तिनको गहिकै गगन जो हृदय आकाश तामें राखै । याके आवरण के मंत्र औ ध्यानको प्रकार हमारेशान्तशतक' में लिख्यो है । ककार सुखको है। हैं तामें प्रमाण । “कैः प्रजापति रुद्दिष्टः को वायुरिति शब्दितः॥कश्चात्मनि संमाख्यातः कस्सामान्य .उदाहृतः ॥ १ ॥ कं शिरो जलमाख्यातं कं सुखेऽपि प्रकीर्तितम् ॥ पृथिव्यां कुः समाख्यातः कुः शब्देऽपि प्रकीर्तितः ॥ २ ॥ खखा चाहै खोरि मनावै । खसमर्हि छोड़ि दशहु दिशि धावै॥ खसमहिं छोड़ि क्षमा द्वै रहई।होइ अखीन अक्षयपद गहई ३ खा जो चैतन्याकाश ताहूको चैतन्याकाश अर्थात् ब्रह्महूको ब्रह्म जो साहब ताको जो चाहै तो अपनी खोरि जो चूकसो मनावै कहे बकसावै । कौन चूक ? १-‘क’ ब्रह्मा, वायु, आत्मा और साधारणको कहतेहैं । 'के' शिर, पानी, और सुखको कहतेहैं । शब्द और भूमिको 'कु' कहतेहैं। ॥ ' ६ ।