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 अथ चौंतीसी ।

ओंकार । ओंकार आदिहि जोजानालिखिकै मेटि ताहि फिीरमानै॥ वे ओंकार कहै सव कोई।जिनहुँ लखा सो विरला सोई॥१॥ चौंतीसी । कका कमल किरणिमें पावै।शशि विगसित संपुटनहिं आवै॥ तहां कुसुंभ रंग जो पावै । औगह गहकै गगन रहावै ॥ १॥ खखा चाहै खोरि मनावै । खसमह छोडि दशौ दिशि धावै॥ खसमहिं छोड़ि क्षमा है रहई।होय अखीन अक्षय पद गहई२ गगा गुरुके वचनै मानै। दूसर शब्द करै नहिं कानै ॥ तहां विहंग कतहुँ नाहिं जाई। औगह गहकै गगन रहाई॥३॥ घघा घट विनशे घट होई । घटहीमें घट राखु समोई ॥ जो घट घटै घटै फिरि आवै। घट्टही में फिरि घटै समावै॥४॥