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(४१८) बीजक कबीरदास । वातकथै असमानको मुद्दति नियरानी। वहुत खुदी दिल राखते बुड़े बिन पानी ॥६॥ कहै कबीर कासों कहों सिगरो जग अंधा। सांचेसों भाजे फिरें झूठे सों बंधा ॥६॥ हे संत सुजान! जो तुम सुजान होउ तौ वा झूठेस न पतिआहु मेरी बात सुनै। वह ठग जो है तिहारो अनुभव धोखा ब्रह्म सो तेरे वटही में है धोखामें पर आपनो स्वरूप जो साहबको दास ताको मतिं खोउ ॥ १ ॥ धरतीमें कहे नीचेके लोकनमें औ असमानमें कहे ऊपरके लोकन में वहीं झूठे ब्रह्मका मंडानहै औ दशौ दिशा जे हैं छः शास्त्र औ चारवेद तिनमें वहीको फंद वही के फंदते इनको जो है यथार्थ अर्थ सो कोई नहीं जानैहं जीवके आनिकै घेर लियो है अर्थात शास्त्रन वदनमें अर्थ बदलि बदलि वह झूठे ब्रह्मको उपदेश कैकै गुरुवा लोग भुलाई दियो है सब में वही घोखही ब्रह्म देखावै ॥ २ ॥ योग यज्ञ जप संयम तीर्थ व्रतदान नवधा सगुणाभक्ति ॐ वेदकिताब इनसब में झूठे कहे वही धोखा ब्रह्मका बाना कहे बिरदावली गुरुवा लोग सबकी मनावै हैं कि, या साधन कीन्हे अंतःकरण शुद्ध होय है तब ब्रह्म को प्राप्त होइहैं ॥ ३ ॥ ॐ काहूको शब्दै फुरै है कहे वेद शास्त्र किताब कुरान पढ़कै उनको अर्थ बदलि बदलिकै शास्त्रार्थ करिकै औरकों हरावै है उनहींको हिंन्दू तुरुके दूनों जाति मान बड़ाई करैहैं औ वोई मान बड़ाई लैरहै हैं । पंड़ित मोलबालोग औ कोई जे बैरागी हैं संन्यासी हैं। फकीर हैं औलियाहैं ते काहूको बेटादियो काहूको जागा दियो कहूं जलमें हीठि गयो कहूं आकाशते उड़ गये कहूं दश पांच वर्ष कोठरी चुनाइकै आये कहूं भूत भविष्य वर्तमान जानिलियो इत्यादिक नाना प्रकारको करामात देखाइकै हिंन्दु तुरुक दूनों दीनन सों मान बड़ाई लैकै रहै हैं ॥ ४ ॥