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शब्द । | (४११ ) तें प्रेतनको जूठ खाय है कहे भैरव भूत आदिकन के बलिदान खाय है उनके दिये तपैना शराब पियै है ॥ ३ ॥ लख चौरासी जीव योनिमें सायर जात बह्यो । कहै कबीर सुनौहो संतौ श्वान कि पूंछ गह्यो ॥ ४ ॥ श्री कबीरजी कहै हैं कि हे संतौ! जीवौ सुनो तुम परम पुरुष पर जे श्रीरामचन्द्र हैं ते तुम्हारे रक्षक संसार सागरते पार कै देनवारे जहाज तिनको छोडि श्वान जे हैं ई सत्र शुददेवता तिनकी पूंछ गहे चौरासी लक्ष योनि समुद्र संसारमें बहो जाय है सो श्वान की पूंछ गहेते कैसे संसार समुद्रते पार जाउगे ।। ४ ।। इति एकसै सात शब्द समाप्त ।। अर्थ एकसै आट शब्द ॥ १०८॥ अब हमभयलवहिरजलमीनाचुरुवजन्मतपकामकीना तवमें अछलो मनवैरागीतजलो कुटुम्वराम रटलागी॥२॥ तजलो काशी भै मतिभोरी।प्राणनाथ कडु को गति मोरी ३ हम चलिगैल तुम्हारे शरणाकितहुं न देखो हरिको चरणा ४ हहिं कु सेवक तुमहि अयाना दुइ महँदोषकाहिभगवाना हम चलिगैल तुम्हारे पासादास कबिर भल कैलनिरासा ६ | श्री कबीरजी कहै हैं कि, जब मैं साहबके पास गया तब यह बिनती कियो कि तबते संसार के जलके मीनरहे अब जबते हम संसारके बहिरे तिहारे प्रेमजलके मीनभये प्रथम हम पूर्व जन्ममें पंचांगोपासना तपस्या बहुत करी पुनि जव जन्मलियो तब हम को पूर्वजन्म की सुधि बनीरही वह तपस्याको मद कहे अहंकार हमको बहुत है सो वही तपस्याके प्रभावते ॥ १ ॥ तब हमको अच्छो मनमें वैराग्य है रघुनाथजीमें भक्ति भई तब कुटुम्बको छोड़िकै राम राम रट लगावत भयो ॥ २ ॥ तब प्राणनाथ मैं काशी छोड़िदियो मेरी मति भोरी भई कहे पूर्वजन्म के तपके मदते निर्गुणरस्