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| (४०६) | क्या काशी क्या ॐषर मगहर हृदय राम बस मोरा ।। जो काशी तन तजे कवीरा रामै कौन निहोरा ॥५॥ जो हृदयमें श्रीरामचन्द्र बास किये हैं तो क्या श्रीकाशीहै क्या ऊपर है क्या मृगहरहै जहैं मेरै तहैं मुक्ति द्वैजाइ तौ श्रीकबीरजी कहे हैं कि श्रीरामचन्द्रको कौन निहोरा तेहिते मैं श्रीरामचन्द्रको निहोरा कारकै मगहर मेंही शरीर छोड्यो मोको मगहर बाधा न कियो तेहिते हे जीवो! तुमहूं परम पुरुष पर श्री रामचन्द्रको हृदयमें धरौगे औ रामनाम जपैगे तो तुमहूं को कुछ बाधा न रहेगी जहैं मरौगे तहैं मुक्त बैनाउगे ताते और सब धोखा छोड़िकै परम पुरुष पर श्री रामचन्द्रको स्मरण करी मैं अजमाइकै कहौहौं जो कहो अपने शरीर छोड़िबेकी कथा श्रीकबीरजी अपने ग्रन्थमें लिखे हैं यह असम्भव बातेहै तौ मगहर में जो श्रीकरजी शरीर छोड्ये तो आपनी रामोपासकता देखाइबेको मैं किगहरमें शरीर छोडौंहों कैसे यम मोको गदहा करेंगे औं कैसे मुक्त न होउँगो हो मगहरमें मैं शरीर छोड्यो यमको किया कछु न भयो मगहरमें शरीर छोड़ मथुरा में जाय रतनाकंदु इनका उपदेश किया है पुनि बहुतदिन प्रकट रहै हैं। याते यह देखायो कि नित्य वृन्दावनके रासमें देख्यो जाइ है जहां सब मुक्त ढुकै जाइहैं परम मुक्त है नित्य वृन्दैवनके रासमें जाय तामें प्रमाण शुकाचार्य मुक्त है गये हैं तिनसों श्री कृष्णचंद्र की उक्ति ॥ “स चोवाच प्रियारूपं लब्ध्वंतं शुकं हरिः । त्वं मे प्रियतमा भदे सदा तिष्ठ ममांतिके ॥ इति पद्म पुराणे, सो सब कथा आपही धर्मदासते निर्भय ज्ञानमें आपनेही मुख कमलते कह्यो | इति एकसै तीन शब्द समाप्त । अथ एकसै चार शब्द ॥ १०४ ॥ कैसे कै तरो नाथ कैसे के तरी अबू बहु कुटिल भरो ॥ १ ॥ कैसी तेरी सेवा पूजा कैसो तेरो ध्यान ।। ऊपर उजर देखो बक अनुमान ॥ २ ॥