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शब्द । (३९५) क्या मूड़ी भूमिहि शिर नाये क्या जल देह नहाये । खून करै मसकीन कहावै गुणको रहै छिपाये ॥२॥ कबीरजी कहै हैं कि, हिंदू तूरुक तुमको बिसराइकै और और बिचार कैरै हैं। या चित्तमें न दीनै मिहर करिये काहेते कि, तुरुके मूड़ी भूमि जो गोर तामें शिर नावै है औ हिन्दू वहुत जलसों नहायहै यात काहभयो आपको तो जनबै न कियो औ जीवनके गरकाँटे है ऐसो खूनकरै तौन खून तौ छिपावै है आपते ने सर्वत्रपूर्ण हैं तिनको नहीं जानै है औ मसकीन जो फकीरसो कहावै है या कहाभय ॥ २ ॥ क्या भो वजू मज्जन कीन्हे का मसजिद शिर नाये ।। हृदया कपट निमाज गुजारै कहाभो मक्का जाये ॥३॥ हिंदू एकादशि चौबिस रोजा मुसलम तीस बनाये।। ग्यारह मास कहौ किनेटारौ ये केहि भाइँ समाये ॥ ४ ॥ हिन्दू बहुत प्रकारके मज्जनकरै हैं औ तुरुक वजूनो कुल्ला मुखारी करके हृदयमें कपट सहित निमाज गुजारयो, मसजिदं में माथ नवायो, मका गयो याते काह भयो ? आपको तो जनबै न कियो ॥ ३ ॥ हिन्दू तौ चौविस एकादशी रहै औ तुरुक तीसरोजा रहे यात काहभयो ? काहेते यातो जनबै न कियो कि और दिन ये काहेमें समायँगे ई सब दिन साहिब के हैं ग्यारह मास काके हैं ॥ ४ ॥ पुरुष दिशिमें हरि को बासा पश्चिम अलह मुकामा । दिलमें खोज दिलैमें देखो यहै करीमा रामा ॥५॥ • जो खोदायमसजिदमें बसतुहै और मुलुक केहि केरा। तीरथ मूरति राम निवासी दुइमै किनहुँ न हेरा ॥ ६॥ हिंदू कहैहैं कि,पूरुब औ उत्तरके कोने में सुमेरुहै ताहीमें बैकुंठ है वहँते सूर्य उदय होइहै तैहैं हरिको बासहै ताही ओर पूजा ध्यान करै हैं। औ पश्चिमति