________________
शब्द । ( ३९३ ) साहब कहैहैं या संसाररूपी नगरको कोतवाली को करे जौने नगरमें शरीररूपी मांस फैलहै । गीध जो निर्जन काळ सो रखवारहै औ जहां जीवको स्वरूप ज्ञान जो मूसरूप नाव ताके बिलार कड़हारयाहै कहे गुरुवालोग औ दादुर जो जीवही सो सवैह प्राण जो सर्प सो पहरी हैं पै ई नानाशारमें लैजाइहैं औ गाय जो गायत्री सो आपने तात्पर्य छपाय राख्यो सो बांझ भई औ बैल जो शब्द ब्रह्म सो बियाय है कहे नाना ग्रन्थरूप बछवा भये तेई वछवाका तीन तीनि सांझ दुहै हैं अर्थात् रजोगुणी तमोगुणी सतोगुणी सब वाही को दुहे हैं। कहे पढ़े सैनहैं औ सिंह जो विवेक है सो सियार जो कुमति तास रोजही जूझैह सो कबीर जो है जीव ताक पद् जो है मेरो धाम ताको कोई विरला बुझै है जे मेरे धाम को बुझै हैं ते संसारते छूट जाय ॥ ४ ॥ इति पंचानबे शब्द समाप्त । अथ छानबे शब्द ॥२६॥ काकहि रोवहुगे वहुतेरा ।बहुतक गये फिरे नहिं फेरा॥१॥ हमरी बात बतें न सँभारा। बात गर्भकी तें न विचारा॥२॥ अब तें रोया क्या हैं पाया। केहि कारण तें मोंहि रोवाया३ कहै कबीर सुनो नर लोई ।कालके वशहि परौ मति कौई४ का कहिकै रोवोही बहुत तरहते कि, ये हमारे भाई हैं, ई बाप हैं, ईपुत्र हैं। बहुत यही तरहते गयेहैं फार नहीं फेरेफिरे हैं ॥ १ ॥ सो जब जब हमको तेरो दुःखदेखिकै करुणाभई हमारो वा तोको उपदेश दियो सो तू न सँभारे जो करार किये हैं कि, मैं भजन कराँगो । सो न बिचारे । साहबको भजन न किया । अबतें गर्भमें जाय जाय संसारमें आय आयकै रोवै है कहे दुःखपावैहै सो क्या हैं पाये अब हमको तें काहे रोवावैहै तेरो दुःख देखिकै मोको दुःख होय है सो कबीरजी कहहैं कि, हे नर लोगो! साहबको जानौगे तबहीं कालते बचौगे सो साहब भुलायकै काहे कालके बशपरौहौ संसार दुःखपावौहौ॥४॥ इति छानबे शब्द समाप्त ।