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( ३९२ ) बीजक कबीरदास । आत्माकी ज्योति मिलायकै वहि ज्योति को दैमारयो कहे छोड्यो अर्थात् सबको निराकरण के कैवल्य शरीरमें प्राप्तं भयो अरु वहूको छोड्यो तब आरमाकी ज्योति कहां समाईंहै सो कहै हैं जीवके मुक्त भये पर परम परपुरुष श्रीरामचन्द्र हंसस्वरूप नेइहैं तामें टिकिकै साहबकी सेवा जीव करैहै यह ज्ञानतो जीवनानै नहीं है वही ब्रह्म प्रकाश को जानिराख्या है कि हमैंहीं ब्रह्महैं सो जब मनको निराकरण है गयो तब ब्रह्महू को लैजाय है तब आत्मै रहिनाय है याते मनै को अनुभव ब्रह्लहै सो नौने हंस स्वरूप में बा ज्योति समाईंहै ताको बिचारकरो ॥ २ ॥ चारवेद ब्रह्मा निजकहिया तिनहुं न या गात जानी । कहै कबीर सुनो हो संतौ बूझहु पंडित ज्ञानी ॥३॥ ब्रह्मा चारिवेदकह्या तिनमें यहकह्यो कि मुक्तभये पर विग्रहको लाभ होयहै॥ **मुक्तस्य विग्रहो लाभः ॥ इत्यादिक श्रुति अखिही कह्यो तऊ न जान्या काहेते जो जानते है जगत् की उत्पत्ति न करते हंसस्वरूपमें टिकिकै साहबके लोकको चले जाते सो कबीरजी कहै हैं कि हे संतौ ! सुनौ जाके सारासार बिचारिणी बुद्धिहोय सो पंडित कहाँव सोई पंडितहै सो हे ज्ञानिउ ! जिन संपूर्ण असारको छोड़ि कै सार जे साहब तिनको ग्रहण कैलिये ऐसे ने पंडितहैं। तिनस बूझो वहगति वाई बूझैहैं तबहीं तिहारो धोखा ब्रह्म छूटैगो ॥ ३ ॥ | इति चौरानबे शब्द समाप्त । अथ पंचानचे शब्द ॥२५॥ कोअसकरैनगरकोतवलिया। मासुफैलाय गीधरखवरिया १ मूस भो नाव मॅजारि कॅड़हरिया। सोवै दादुर सर्प पहरिया २ वैल बियाय गायझै बाँझा । बछवै दुहिया तिनतिन साँझा ३ नितउठि सिंहस्यारसों जूझै । कबिरक पद जन विरला बूझैध छ ।