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शब्द । ( ३८९) अथ तिरानबे शब्द ॥९३ ॥ वाबू ऐसो है संसार तिहारो येकलि है ब्यवहारा । को अवअनख सहै प्रतिदिनको नाहि नरहनि हमारा॥१॥ सुमृति सुभाव सबै कोई जाने हृदया तत्त्व न बुझे ।। निरजिव आगे सैर जिव थापे लोचन कछुव न सूझै ॥२॥ तजि अमृत विष काहेको अंचवै गांठी वधो खोटा। चोरनको दिय पाट सिंहासन शाहुको कीन्हो ओटा ॥३॥ कह कबीर झूठो मिलि झूठा ठगहीठग व्यवहारा । तीनिलोक भरि पूरि रहा है नाहीं है पतियारा ॥४॥ बाबू ऐसो है संसार तिहारो येकलि है व्यवहारा। को अव अनख सहै प्रतिदिनको नाहिंन रहनि हमारा॥१॥ | बाबू कहे हे जीवो! तिहारो यह संसार ऐसोहै कि एक जो है मन ताहीके लिये यह संसारको व्यवहार है अरु वहीके छोड़ते से जार छूट जाइहै तामें प्रमाण॥‘मन एव मनुष्याणां कारणं वन्धमोक्षयोः}} तामें कबीरजीको प्रमाण । “मुक्ति नहीं आकाशमें मुक्ति नहीं पाताल। जब मनकी मनसा मिटै तवहीं मुक्त विशाल। सो यह मनकी प्रतिदिनकी अनख कौन सहै अर्थात् अणुजो जीवहै ताको प्रतिदिन खाई लेइहै कहे अपने में मिलाइ लेईहै सो रोजरोजकों या स्वरूपको भुलाइब कौन सहै यह मन हमारे रहनि माफिक नहीं है यह जड हम चैतन्य याते हम कैसे मिलेंगे ॥ १ ॥ सुमृति सुभाव सबै कोई जानै हृदया तत्त्व न बूझै । निरजिव आगे सरजिव थापै लोचन कछुव न सूझै ॥२॥ । सो यहि तरहते मनको स्वभाव सुमीत जे स्मृति है तामें बर्णन है सो सबै कोई जानै है परन्तु हृदयमें जो मनको तत्त्वकहे स्वरूपहै ताको कोई नहीं