यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

(३८६) बीजक कबीरदास । छाडै है जो जेतो पाया है से वहाको सच मानिकै सांचपदार्थ को नहीं जानै है दुःखहीके कारण शुकाचार्य गर्भेमें मायाको त्यागिदियो । शुकाचार्य गर्भेमें बारहबर्षके द्वैगये सो गर्भते न निकसैं कहैं कि जो हम निकसँगै तौ हमको माया लगि जायगी तब ब्रह्मादिक देवता सब जुरे आय न निकसे तब भगवान् आइ कह्यो कि बरदाके सींगमें सरसौं धरि देइ जब भर सरसै सींगमें रहै है। यतने काल भरमाया हम बँचेले हैं निकसिआ ओ सो शुकाचार्य निकसे नारासहित बन को चलेगये साहबको मिले जाइ ॥ २ ॥ योगी दुखिया जंगम दुखिया तापसको दुख दूना।। आशा तृष्णा सवघट व्यापै कोई महल नहिं सूना॥३॥ सच कहीं तो सवजग रखीझै झूठकहो नहिं जाई । कह कबीर तेई भ दुखिया जिन यह राह चलाई ॥४॥ योगजिंगम सबदुखिया अरु तापसका तो दूनदुःखहै काहेते कि आशा तृष्णा सबके घटमें व्यापै हैं कोई महल सूननहीं है काहूको हृदय आशातृष्णाते सून नहीं है सबके हृदय में आशा तृष्णा व्यापि रही ह ॥ ३ ॥ श्रीकवीरजी कहै हैं कि अपने अपने मतमें जीब लगे हैं। सच मानिकै जो सांचको हम कहै हैं कि सांच जे परमपुरुष परश्रीराम चन्द्र तिनमें लगे जिनको तुम जानि राख्यो है ते असांचहैं तो खीझै हैं और मोसों झूठ कह्यो नहीं जाइहै सो जे जे गुरुवा लोग अपनी अपनी मतकी राह चलाई हैं ते दुखिया है गये हैं तौ जिनको वे शिष्य बनाया है ते दुखिया काहे न होई ॥ ४ ॥ इति इक्यानवे शब्द समाप्त ।। अथ बानबे शब्द ॥ ९२॥ | गुरुमुख । तो मनको चीन्हौरे भाई । तनु छूटे मन कहाँ समाई॥१॥ सनक सनंदन जयदेव नामा। अंबरीष प्रहलाद सुदामा ॥२॥ भक्त सही मन उनहुं न जानाभिक्तिहेतु मन उनहुँ न ज्ञाना३