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(३८४) बीजक कबीरदास । ' बाशष्ठ शिष्ठ विद्या संपूरण राम ऐसे शिष शाखा । जाहि रामको करता कहिये तिनहुँक काल नराखा ॥४॥ अरु योग युक्तिको अनुमान करिकै गोरख पवनराखै नहीं जान्यो कहे प्राण चढ़ावै नहीं जान्यो काहेते किं ऋद्धि सिद्धि संयममें लगिगये ब्रह्मके पार में साहब हैं । तिनको न जान्यो ॥ ३ ॥ औ वशिष्ठ जे हैं संपूर्ण विद्यामें श्रेष्ठ तिनके राम ऐसे कहे श्रीरामचन्द्रहीके बरोबर रघुवंशी जिनमें शिष्य शाखाभये तिनहूँको काळ नहीं राख्यो अर्थात् यह शरीर उनहूँको न रह्यो औ राजन में जिनको राम को कर्त्ता कहै हैं कि श्रीरामचन्द्रको जे उत्पन्न कियो है ऐसे दशरथको काल न राख्यो । इहां गोरख आदिक योगी दत्तात्रयादिक ज्ञांनी वशिष्ठ आदिक ब्रह्मर्षि ई सबते श्रेष्ठ । याते संयोगी ज्ञानी ब्रह्मर्षि पृथ्वीके आइगये औ दशरथ महाराजको श्रीरामचन्द्र बिछोह होत प्राण छूटिगयो सो ये सब राजर्षिते श्रेष्ठ हैं ताते दशरथ महाराज के कह सब राजा पृथ्वीभरके आयगये तिनहूँको काल नः राखत भयो अर्थात् शरीरधारी कोई नहीं रहि जाइ है कोई योगकार जो जियो तो ब्रह्माके दिन भर जियों महाप्रलयमें जब ब्रह्माको नाश हूँ जाइ है तब ब्रह्मांडई नहीं रहै है और कोई कैसे रहै सो हंस समाधि कै मिलत है ॥ ४ ॥ हिन्दूकहै हमैं लै जरवै तुरुक कहै मोर पीर। दूनों आइ दीनमों झगरें देखे हंस कवीर ॥५॥ जाको हंसस्वरूप साहब देइहै सो हंस स्वरूपमें स्थित वैकै साहबके पास जाईहै । सो साहब कहै है कि जो मोको जानै मैं हंसस्वरूप देऊँ तामें स्थित हैंकै मेरे पास आवै। सो मोको तो जानै नहींहै हिंदू कहैहैं कि हम वह ज्ञानाग्नि कैकै सबकर्म जारि देईंगे ब्रह्म होइ जाईंगे औ मुसल्मान कहै हैं कि पिरान जाहिर जो मका हैं तहां हमारो पीरहै हमारे खाबिंद ते हमारे कर्म सब जारि देईंगे। फिरि दोनों आइ दीनमें झगरै हैं वे कहै हैं कि तुम्हारा खोदाय झूठाहै वे कहै हैं कि तुम्हारा ईश्वर झूठा है सो जीवात्मा तौ मेरो बंदाहै सो आपने स्वरूपको जानिकै मोको जानै नहीं है आपने अपने अनुमानकर आपने खाविंद बनाइ लिये हैं