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(३८०) बीजक कबीरदास । ऐसी वाकी माँसुरे भाई पल पल मांसु बिकाई । | हाड़ गोड़ लै घूर पँवारे आगि धुवां नहिं खाई ॥३॥ शिर औ सींग कछू नहिं वाके पूंछ कहां वह पाई। | सब पाण्डित मिलि धन्धे परिया कबिर वनौरी गाई ॥४॥ सावज न होइभाई सावज न होइवाकी मांसु भखैसब कोई | साहब कहै हैं कि, जेहि शब्द ब्रह्ममें तुम लगे हैं। औ तुमको वही भुलाय दियो सो सावज न होइ तने शब्दको तात्पर्य तुम नहीं बूझो वहीके मांसको तुम सब भक्षीही कहे बागी सब कहौहौ औ वही मांस सब जगहै ताहीको भक्षौहौ कहे भोगं करोहै। अरु वाकेा ताफ्यै सत्य पदार्थ जो मैंह ताको नहीं नानै हौ संपूर्ण बाणीको बिस्तार असत्यहै मैंहीं सत्यहौं ॥ १ ॥ सावज एक सकल संसारा अबिगति वाकी बाता। | पेट फारि जो देखिये रे भाई आहि करेज न आता २ सो वाको पेट फारिकै जो देखिये अर्थात् जो वाको बिचारिकै देखिये तात्पयेते तो जो तुम बिचार कारराख्यो है कि शब्द ब्रह्मके अर्थ को सारांश करेज निर्गुण ब्रह्म है सो नहीं है वेदतो तात्पर्य ते मोको बर्णन करै है अरु त्रिगुण माया आंतहै सो वाकी बात अबिगति है कहे अव्यक्त है काहूके जानिबे योग्य नहीं है जो मोको जानै है सोई वह सावज को जानै है ॥ २ ॥ ऐसी वाकी मांसुरे भाई पल पल मांसु विकाई। हाड़ गोड़ लै घूर पँवारै आगि धुर्वा नहिं खाई ॥३॥ | पल का कहाँवै है सो वह शब्द ब्रह्मकी मांसु जो है बाणी सोहे भाइ ऐसी है कि, पल पल कहे टका टका को विकोइहै अर्थात् को विकाईहै तामें प्रमाण ॥ "कबीरजीको चौरासी अंगकी साखी॥“गली गली गुरुवा फिरें दिक्षा हमरी लेई । की बूडी की ऊबरौ टका परदनी देहु ॥ थोरे थोरै अक्षरके मंत्र गुरुवा लोग देहूँ औ शिष्यनसों धन लेइहैं अरु केवल शब्द ब्रह्लते मुक्ति नहीं होईहै तामें