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( ३६८) बीजक कबीरदास । जाहि मासुको पाक कहतहैं ताकी उतपति सुनु भाई । रज बी रजसो मासु उपानी मासु नपाक जो तुम खाई ॥३॥ अपनो दोष कहत नहिं अहमक कहत हमारे वड़ेन किया। | उसकी खून तुम्हारी गर्दन जिन तुमको उपदेश दिया॥४॥ स्याही गई सफेदी आई दिल सफेदु अजहूँ न हुआ। रोजा निमाज बांग क्या कीजै हुजरे भीतर बैठ मुआ॥६॥ पंडित वेद पुराण पढ़ औ मोलनापर्दै सो कुराना । कह कवीर वे नरकगये जिन हरदम रामहिं ना जाना॥६॥ | १-५ तक के पदको अर्थ स्पष्टई है अंतके छठे तुकको अर्थ करैहैं। सब समेटिकै ने हरमद कहे हर साइत श्वास श्वाशमें रामको नहीं जानते हैं ते नादान कहे बेवकूफ भूले अथवा हरदम कहे हरएकके दम कहे प्राणमें अंतर्यामी रूपते व्यापक परम पुरुष पर श्रीरामचन्द्र को जे बेवकूफ नहीं जानते हैं ते मोलना पंडित भूलिगये जो वे आपने हुनरामें बैठिकै रोना निमाज किया औ कुरान किताब पढ़ा औ जो पंडित अपने घरको कोठरीमें एकांअवैकै वहुत वेद शास्त्र को पट्टा तै' का किया आखिर नरकहीं में गये कि काहूको न सुन्यो कि बिना रामको जाने मुक्त वैगये ॥ ६ ॥ इति तिरासावां शब्द समाप्त । अथ चौरासीवाँ शब्द ॥ ८४॥ काजी तुम कौन किताव बखाना । आँखत बकत रह्यो निशि बासर मति एकौ नहिं जाना॥१॥ शक्ति न माने सुनति करतही मैं न बदौंगा भाई । | जो खोदाय तुव सुनति करतहै आपुहि काटि किन आई२॥