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| ( ३६६) बीजक कंबीरदास । बाजै है अर्थात् पराबाण उहैं ते निकसै है .सोई पश्यंत ते मध्यमा आइ वैख• रीमें प्रकट होइ है । षटचक्रको बेधिकै कुण्डलिनी शक्ति नागिनी जायसै ताके साथ त्रिगुण ते युक्त जो एक सगुणनीव है सो जायेहै सो वाकी विधि आगे लिखि आये हैं। सो वृषभ तो उहां नहीं चलै है औ कोल्हू जो कुंडलिनीशक्ति सो मांजै कहे देह मांनिकै उठे है सो पांच हजार कुंभक किया तब श्वासनते तपित होइहै अथवा खेचरीते सुधाबिंदु वाके ऊपर परयो ताकी शीतलता पाईकै उठे है सो ब्रह्मांड में जाइकै अर्थात् जेतने रोज समाधि लगायो तेतने दिन रही ताके साथ जीवहू गयो।सो कहै हैं कि,ब्रह्मांड जोरजोगुणहै ताको योगाग्निमें होमि दियो सो रजोगुण जरया तौ तमोगुण जरै हैं । अरु भक्ष जो जीवैहै सो नाभीके जलमें रह्यो तहाते चलकै गगन जो ब्रह्मांडहै तहां गाजै है कहे यह कहै है कि महीं मालिक हौं ॥ १ ॥ २ ॥ नितै अमावस नितै ग्रहण होय राहु ग्रास नित दीजै। सुरभी भक्षण करै बेद मुख घनवरसै तन छीजे ॥३॥ पुडुमिङ्ग पानी अंबर भरिया यह अचरज को कीजै । त्रिकुटि कुंडल मधि मंदिर बाजै औघट अंबर भीजै ४ खेचरी की दृष्टि तीनहै तामें एक पूर्णिमा है कहे सर्वत्र पूर्ण देखै है। । ऊध्र्वदृष्टि प्रतिपदा है । औ अंतरदृष्टि अमावस है । सो जब अंतर खेचरी चढ़ औ कापूतरी आकाशमें देधी कहे ऊर्ध्वदृष्टि प्रतिपदा में बेधी तब अंधकार अविद्या ग्रहण हुँकै चैतन्यको छाइ लियो । अर्थात् प्रथम अंधकार देखोपरो और कछु न देखि परयो । पुनि बिजली ऐसी चमकी तब तारागण वीर्य है ताकी गति मालूम भई तब प्रथम सूर्य मण्डल पुनि चंद्र मण्डल देखोपरयो ।सो वही ज्योति में लीन हैं समाधि लगी रहैहै जब समाधि उतरी तब जीवको अमावस भई तममें परचे आई । तब सूर्य प्रकाश देखत रह्यो ताको मायारूपी राहु ग्रसि लियो अथवा जङ नागिनिको सुधा पिआवै। तब बहुत दिनकी समाधि लगैहै। अब जौन पुरुष रोन समाधि लगावहै औ उतौरै है सो कहै हैं जब समाधि चढ़ाय लैगयो तब याको अमावस द्वैगयो पूनि तममें परयो औ नित्य ग्रहण होइहै वे चंद्रमा औं सूर्य दुइ