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} शब्द ।। ( ३६३ ) जिन जिह्वा गुण गाइया विन बस्तीका गेह । सूने घरका पाहुना तासों लावै नेह ॥ ४ ॥ चार वेद कैंड़ा कियो निराकार कियरास । विनै कबीरा चूनरी पहिरै हरिके दास ।। ६ ।। तूतो र ममा की भांति ही संत उधारन चुनरी ।। १ ।। | जो तुम मनमाया ब्रह्ममें लागि रह्यादै सो तुम इनके नहीं हो तुमते र ममी की भांतिही अर्थात् राम जो मैंह तिनकी भांतिही जैसे मैं विष्णु चैतन्य हौं तैसे तुम अगु चैतन्यहै। मेरे अंगृही से मेरो जो रामनामहै नाको उधार न नाम: चुनरी कबीरसंत मेरो बनायो है । यही कार बाज मों मकान्हू है। यहि हेतुने तार को कहै हैं अर्थात् न३ राम नाममें नौगे तब यह जानि जाहुगे कि मकार र स्वरूप रकार साहबके स्वरूप है औ कबीर संत असार जो है जगतमुख अर्थ ताकः त्यागिकै सार जो है साहवमुख अर्थ ताको ग्रहण कारकै चूनरी बनाई है सो के हैं ॥ १ ॥ वालमीकि बन वोइया चूनि लिया शुकदेव । कर्म वेनौरा है रह्यो सुत कातै जयदेव ॥ ३॥ माटीको है बहुत छिद्र याते शरीर बल्मीक कहे बेमौरि है तामें जो रहै। से बाल्मीकि कहावै सो वाल्मीकि आत्मा है सो बाणी रूपी जो बन कहे कपा है ताकी बोवत भयो अर्थात् वहींकी इच्छा शक्ति भई हैं। औ शुच शोके धातु है तेहिते शुक शब्द होइहै–ताको जो देव होई सो शुकदेव कहावै है । सो शोच मनके होइ है अर्थात् सङ्कल्प बिकल्प मनके होइ है। सो शुकदेव मन है । सो आरमाते जो .वाणीरूपी कपासके डेट्टाको अनुसार भयो ताको चुनि लियो अर्थात् बाणी मनै ते निकसी है अरु जय करिकै क्रीड़ाकरै अथवा जय बिषय क्रीड़ाकरै सौ जयदेव कहावै सो सबके जीति लियो है अज्ञान सो मूलाज्ञान जयदेव है तौनेमें कर्म बेनौरा है रह्यो है। विद्या ओवद्या माया सोई सृत हैं जाको मूलाज्ञान जो अहंब्रह्म बुद्धितीनहै। जाके ऐसें