यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

( ३६२ ) बीजक कबीरदास । हे बंदे अपने में तो निबेरा करिलें अपने नियत अपना ठौरं तौ करु मुयेते तेरा घर कहाहै अर्थात् जो सत् असत् कर्म करैगो सो सब नरक स्वर्गदिकनमें भोग करैगो तेतो कर्मके घरहैं तेरे घर नहींहै औ जो ज्ञान कारकै आपने को ब्रह्म मानिकै ब्रह्म प्रकाशमें हैं* शुद्ध जीवन कहैगो सो ब्रह्म होनातौ धोखा है। | जब फेरि उत्पत्ति समय होइगो तब माया धरिलै आवेगी पुनि संसारी वैजाइगई। अरु और और देवतनकी उपासना कारकै उनके लोक जाइ जो तेऊ तेरे घर नहींहैं जब माया धरिलै वैगी तब संसारी वैजाइगो जब मरेंगे औ ये घरनमें जाइगो तब विचार करनेकी सुधि न रहि जाइगी तेहिते जीतही आपने घर बिचारु तेरो घर वहहै जहांके गये फिरि न आवै सो मैं साहबको अंश। सो साहब के पास घर करु कहे और कर जाते फिरि न संसारमें आवै ।। १। सो कबीरजी हैहैं कि हे प्राणिउ यहि अवसरमें कहे मनुष्य शरीर में हो साहबको नहीं जानौहौ तौ हे संतौ ! सुनौ तुमको अंतकाळमें यह कठिन जो कालको घेरा। ताते कौन बचावैगो अर्थात् जहां जहां जाहुरे तहां तहाते काल तोको खाई लेइंगों साहब बचावनवारे खड़े हैं ताको प्रमाण आगे लिखिही आये हैं “अजहूं लेहुं छुड़ाई कालसों जो घट सुरति सँभारै सो साहब को जानिकै साहबके पास जाय जनन मरण छूट जाय ॥ २ ॥ | इति अस्सीवां शब्द समाप्त । -- अथ इक्यासीवां शब्द ॥ ८१ ॥ तूतो ररा ममा की भांति हौ संत उधारन चूनरी ॥१॥ बालमीकि बन बोइया चूनिलिया शुकदेव । कर्म बेनौरा हैरह्यो। सुत कातै जयदेव ॥ २ ॥ तीन लोक ताना तनो ब्रह्मा विष्णु महेश।। नाम लेते मुनि हारिया सुरपति सकल नरेश ॥ ३॥