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शब्द । | ( ३४१ ) बाबा ब्याह करायदे अच्छा वर हित काह । अच्छा वर जो ना मिलै तुमहीं मोहिं विवाह ॥ २॥ यह स्थूल शरीर चरखाहै सो नारिजाय। कहे छूट जाय औ बुदैया जो । मनंहै सो नहीं मैरे है वह चरखा शरीर गट्टि लेइ है कहे बनाइ लेइहै सो जीव केहहैं कि, मैं हजार सूत कातौहीं कहे कर्म छूटने के लिये बहुत उपाय करौहौं बहुत उपासना बहुत ज्ञान इनहीं शरीरनते कहीं परन्तु चरुखळा जे चारो शरीर हैं ने नहीं जरे हैं ॥ १ ॥ जीव गुम्वन के इहां जाइकै कहैं कि हे बाबा गुरूना अच्छा वर हित करनवारो तो हैं तास ब्याह कराय देइ अर्थाद हित करन वारो ने अच्छी देवनाकी उपासना कराइदेइ अरु आछो देवता जो तुम्हें न मिले कहे मुक्ति करि दनवारो देवना जो तुम्हैं न मिलै त तुमही मोको बिवाही कहेज्ञान उपदेश कारकै अपनो मेरो जो भेद है ताकी मेटवाइदङ ॥ २ ॥ प्रथमै नगर पहुंचतै परिगो शोक सँताए । एक अचंभौ हौं देखा बेटी ब्याहे बाप ॥ ३॥ प्रथम साधन बतायो गुरुवालोग कि, ईश्वरकी उपासना करौ जामें अभेद ज्ञान होय सो प्रथम नगर पहुंचते कहे जब गुरुवा देवताकी उपासना बताइदियो ताही प्रथमही शोक संताप परिगयो कई तौने देवताको विरह भयौ सो जरन लग्यो अरु दूसरो ज्ञान उपदेश जो मांग्यो तामें बड़े आश्चर्य भयो कि, बेटी बापको बिवाह्यो । जब उन उपदेश कियो कि तुमहीं ब्रह्मही तुमहीं सर्वत्र पूर्ण हौ सो जीवत कबहुं ब्रह्म होतई नहीं है सो ब्रह्मतो न भयो औ न वामे ब्रह्मके लक्षण आय भयो कहा कि आपने को ब्रह्म मानि कर्म धर्म सब छोड़िदियो सो ज्ञान अज्ञान जीवही को होइ है सो माया जीवहीते *ई है सोई बेटी है सो बाप जीवको विवाहि लियो कहे बोधि लियो ॥ ३ ॥ समधी के घर लमधीआयो आयो बहू को भाइ । गोड़ चुल्हौने दे रहे चरखा दियो डढाइ ॥ ४ ॥