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शब्द । (३३७) तब ब्रह्मांड कहां रहिगया जहां ब्रह्मांडमें लीनद्वेकै बना रह्यो सो यह बात ऐम हैं कि, जे ब्रह्मांडमें प्राण चावै हैं तिनके जब शरीर छुटिजाय तब उनक गैवगुफा सव नरिजॉयहं तव गैवगुफा रूपी करवामें जे प्राण चशे रहै है सो जब दूसर शरीर धरयो तव नासिका जो है टोटी तहाते वहै पवन निकसैहै वही वासना लग रहदै नहिते फिर गुरुसे पूछेकै अभ्यास करनगै है ॥ ४ ।। इति पैसठवां शब्द समाप्त । अथ छाछठवां शब्द ॥६६॥ योगिया कि नगरी बसै मतिकोइाजोरेवसै सो योगिया होइ१ वह योगियाको उलटाज्ञाना ।काराचोला नाही म्याना२॥ प्रकट सी कंथा गुप्ताधारी । तामें मूल सजीवनि भारी॥३॥ वा योगियाकी युगुति जो बूझे रामरमै सो त्रिभुवन सूझै॥४॥ अमृत वेली क्षण क्षण पीवै। कहकवीर सो युग युग जीवै॥६॥ योगिया कि नगरी वसै मति कोइाजोरे वसै सो योगिया होइ योगिया जो है योगी ताकी नगरी जो है ब्रह्मांड गैवगुफा तहां कोई न बसौ अर्थात् हठयोग कोई न करो काहेते कि, जो कोई वह नगरीमें बसे है। अर्थात् हठयोग करे है सो योगियै होइहै कहे फिर फिर वही बासना करिकै योगिया होइँहै योग साधे हे जन्म मरण नहीं छूटे है ॥ १ ॥ वह योगिया को उलटा ज्ञाना।कारा चोला नाही म्याना २ सो वह योगी को उलटा ज्ञान है कहे उलटे पवन चढ़ावै है अर्थात् या शरीर को वेदांत शास्त्रमें निषेध करै है कि, यही शरीर ते आत्मा भिन्न है तीनेही शरीरक योगी प्रथान मानै हैं कि यही शरीर ते मुक्त द्वैनायँगे सो इनको चोला जो है मन जौनेते शरीर पावै है औ मनै गैवगुफामें समाई नाइ हे नाना प्रकार के ने कुत्सित कर्म हैं तिनते मलीन है रह्या है या