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( ३३६) बीजक कबीरदास । न्द्रको अरपि दीन्ह्योजाइ ज्योति भेदिकै साहबमें समाइगयो तामें प्रमाण ।। तुज्योतिभेदने सक्ता रसिका हरिवेदिनः॥ इति ॥ॐ श्रीकबीरहूजाको प्रमाण ‘जैसे माया मन रमै तैसे राम रमाय । तारामंडल भेदिकै तबै अमरपुर नाय॥३॥ इति चौंसठवां शब्द समाप्त । अथ पैंसठवां शब्द ॥६५॥ योगिया फिरिगयोनगरमैझारी।जायसमान पांचजहँनारी | गये देशांतर कोइ नवतावायोगिया गुफा बहुरि नहिं आवै२ | जरि गो कंथ ध्वजागो टूटी।भजिगो दंड खपरगो फूटी॥३॥ कह कबीर यह लिई खोटी।जोरह करवा निकसल टोंटी योगियाफिरिगयो नगरमॅझारी।जाय समानपांचजहनारी | जौने ब्रह्मांड में पांचनारी ने बयारि हैं नाग कूर्म कृकल देवदत्त धनंजय ई जिनमें समाइहैं ऐसे प्राण अपान व्यान उदान समानते जामें समाइगयेहैं। तीन जो नगर ब्रह्मांड ताके मांझते योगिया जो है योगी सो फिरिजाईहै। कहे फिरिफिरि ब्रह्मांडको प्राण चढाइ लैजाइहै ।। १ । । गये देशाँतर कोइ नवतावै।योगिया वहुरि गुफानहिं आवै २ जरिगो कंथ ध्वजागो टूटीभिजिग दंड खपरगो फूटी॥३॥ | जब वह योगी शरीर छोड्यो तब कोई नहीं बतावै है कि कौन देशांतर को गयो कौने लोकको गयो काहेते कि कौन्यो लोक को तौ मानते नहीं है। तेहिते यही शरीर पुनि पावैहै तब वह योगकी सुधि विसरि जाइहै पुनि नहीं गुफामें आवैहै कहे पुनि नहीं प्राण चढ़ावत बनै है॥२॥ कंथा शरीररूपी गुदरी सो जरिगयो तब ध्वजा जो है पवन तौनेकी धारा टूटिगई तब मेरुदंड भेजित वैगयो कहे टूटिगयो औ खप्परजो है ब्रह्मांडकी खपरी सो फूटिगई ॥ ३॥ कह कवीर यह काल खोटीजरह करवा निकंसलटटी४ श्रीकबीरजी कहे हैं कि यह कलि बड़े खोटेहै अथवा यह काल जो है झगड़ा सो बड़े खोटेहैं यह कोई नहीं बिचारै है कि जब शरीरही नहीं गयो