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शब्द । (३२७) जारों मांग में तासु नारिकी सरिवर रचल हमारी ॥२॥ जना पांच कोखियामें राखौ औ राखौं दुइ चारी । पार परोसिन करों कलेवा संगहि बुधि महतारी ॥ ३ ॥ सहजै बपुरी सेज विछायो सूतल पाउँ पसारी । आउँ न जाउँ मरों ना जीवों साहव मेटयो गारी ॥ ४ ॥ एक नाम मैं निजके गहिल्या तौ छूटल संसारी।। एक नाम मैं वदिकै लेखौ कहै कबीर पुकारी ॥३॥ माई मैं दूनौ कुल उजियारी।। वारह खसम नैहरे खायो सोरह खायो ससुरारी ॥ १॥ चित् शक्ति है है कि, हे माई! कहे हे माया! मैं दून कुल उजियार करनवारी हौं कहे मोहीते जीव कुल उजियार हैं।जीवछः प्रकारके है १ मुक्त २ मुमुक्षु३विषयी४बद्ध५नित्यबद्धनित्यमुक्त औ ब्रह्म कुल उजियारहै सब ईश्वर ब्रह्म कुलहीमें हैं याते ब्रह्मकुल कह्यो । मैहीं अनुभव करौहौं तब ब्रह्म होइहै औं मैहीं सब जीवकी चैतन्यता हीं से बारह खसमको नैहरमें खायो । ते बारह खसम कौन हैं तिनको कहै हैं-अष्टप्रधान ने हैं काली, कौशिकी, विष्णु, शिव, ब्रह्मा, सूर्य, गणेश, भैरव, ओं नौं परमपुरुष जिनके ई आजै प्रधान कहे मंत्री हैं । इनको महातंत्रमें वर्णन हैं । औ पांच व्रझ आदि मंगलमें वर्णन करिआर्य हैं तिन में रफरूपा जो है से मंत्ररूप है औ परा शक्ति है। ताका शक्तिमान में अंर्तभाव हैं । । शब्दब्रह्म प्रणवरूप है सो उपास्य देवता नहीं है, विचार करिबेलायकैई। तेहिते पांचव्रह्ममें तीन ब्रह्म उपासना करिये लायक हैं सो अष्टधान और नवौं परमपुरुष औ तीनिब्रह्म मिलाइकै बारह उपास्य भये तेई खसम भये तिनको शुद्ध समष्टि जो है साई नैहर है जहांते व्यष्टि होइहै । सो जहां समष्टि व्यष्टि भयो है तहां मैं इनके खाइलियो है कहे पेट में डारिलियो है मोहिते भिन्ननहीं है औ जब मैं अहं ब्रह्म बुद्धि करिकै ब्रह्ममें