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( ३२६) बीजक कबीरदास । ढुकै बाहेरै धरोगे ॥ १ ॥ सो या काया जो है ताको बिगुरचन कहे छूटैमें अनि आनि बाटि है काहेते कोई तो या कायाको जारैहै, औ कोई माटीमें गाड़है, सो जो गाडैहै औ जारै है तिनको अब कहै हैं ॥ २ ॥ हिंदू लै जारै तुरुक लै गाडै। ई परपंच दुनो घर छाडै॥३॥ कमें फांस यम जाल पसारााज्यों धीमर मछरी गहि मारा॥ | राम विना नर छैहौ कैसा । बाट मांझ गोवरौरा जैसा ॥८॥ सो हिंदू जेहैं ते तो जोरैहैं औ तुरक ने ते गाँडैहैं । सो ई दूनौ घरमें जो परपश्च है ताको तू छाडै ॥ ३ ॥ संसारमें यमराज कर्म फांस रूपी जाल पसारिराख्योहै । जाही शरीर में जीव जायहै तहैं मारि डारैहैं जैसे धीमर नैन डावरमें मछरी जायहै तौनेही डावरते बँचिकै मारिडॉरै है। तब शरीरकी नाना बाटि होइहै भस्म होयहै कीरा होयही विष्ठा होय नाय है ॥ ४ ॥ सो हे नोवो ! बिना साहबके जाने तुम कैसे होउगे बाटमें, जैसे गोबरौरा जोई आवै नाय सोई कचरि देईहै मरिजायहै ॥ ५ ॥ कह कबीर पाछे पछितैहौ। या घरसों जव वा घर जैहौ॥६॥ । सो कबीरजी कहै हैं कि, जब या घरसों वा घर जाउगे अर्थात् जब यह शरीर ते दूसरो शरीर धरौगे, गर्भवास होइगो तब पछिताउगे । गर्भवासमें साहब की सुधि होइहै सो जब गर्भवासको क्लेश होइगे तब कहोगे कि, हैं हब अबकी बार जो छुड़ावो तो फिर न ऐसे काम करेंगे । सो गर्भ स्तुति श्रीमद्भागवतादिकनमें प्रसिद्ध है । तेहिते यह व्यंग हैं कि, परम पुरुष पर श्रीरामचन्द्रको जानो ॥ ६ ॥ इति इकसठवां शब्द समाप्त । अथ बासठवां शब्द ॥ ६२ ॥ माई मैं दूनौं कुल उजियारी ।। बारह खसम नैहरे खायेा सोरह खायो ससुरारी ॥ १ ॥ | सासु ननँदि मिल पटिया बांधल भसुरा परलो गारी।।