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( ३२४) बीजक कबीरदास । वहि शरीर ते भिन्न है काहेते मारिबों जीबो शरीरको धर्म है, सो अपने स्वरूपको नहीं जानै है स्वप्न समान जे शरीर हैं तिनका सच मानिलियो है ।। गुरु कहे सबते गुरुपरमपुरुष पर जे श्रीरामचन्द्र ते शब्द जो रामनाम ताको उपदेश दियो कि, तँ मेरो है सो मेरे पास आउ सो तौने शब्दमें परमनिधान कहे तिनके रहिबेको पात्र जो साहब मुख अर्थ है ताको शब्द छोड़ दियो औ संसार मुख अर्थ करिकै संसारी द्वैगयो ॥ २ ॥ ज्योतिहि देखि पतंग हूलसै पशु नहिं पेखै आगी। कामक्रोध नर मुगुध परे कनक कामिनीलागी ॥३॥ जैसे दीपककी ज्योतिको देखिकै पतंग हुलसै कहे ज्योतिमें मिलिचेको जाय है परंतु वह पशु जो है अज्ञानी पतंग से नहीं देखे है कि, या आगी हैं यामें जरि जै हैं सो वहीं धसिके जरि जाय है । तैसे काम क्रोधादिकनमें जीव मुगु, १रे हैं या नहीं जाने हैं कि, यामें जरि जायँगे ॥ ३ ॥ सय्यद शेख किताव नीरवै पंडित शास्त्र विचारै । सद्गरुके उपदेश विना तुम जानिके जीवहि मारै ।। ४ ।। सो ४ सय्यद शेखौ ! तुम किताव देखिकै नाना कर्म करौहौ औ हैं। पण्डित ! तुम नाना शास्त्र पुराण पद्रिके सुनिकै नाना कर्म करौ हौ । सद्रुको उपदेश तौ तुम लियो नहीं असतगुरुन के पास जाइ जाइ उनहीं को उपदश पाइकै जानि जानिकै तुम अपने जीव को मारीही कहे जनन मरण रूप दुःख देउहाँ । साहब के जाननवारे जे हैं तिनके पास नहीं जाउहौ जे साहबको वताइदे, औ जन्म मरण तुम्हारो छूटि जाइ या प्रकारते जानिकै अपनी आत्माको मारी हौ तामें प्रमाण।। नृदेहमाद्यं सुलभं सुदुर्लभं लवं सुकल्प गुरुकर्णधारम् । मयानुकूलेन नभस्वतेरितं पुमान्भवाब्धि न तरेस आत्महा' ।। इति श्रीभागवते ॥ ४ ॥ करो विचार विकार परि हरौ तरन तारने सोई । कह कबीर भगवन्त भजन करु द्वितिया और न कोई॥६