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शब्द ।। | ( ३२१) शहर जरे पहरू सुख सोवै कहै कुशल घर मेरा । कुरिया जरे वस्तु निज उवरै विकल राम रेंगतेरा॥३॥ औ शहर कह साहबके मिलने के जेते ज्ञान जीवात्मा के ते जरे जाईहैं औ पहरू जो आत्मा सो सुखों से है कहे साहबके इतावनवार संतनहीं दुरैहैं। ज अपने वारूप नल माया ब्रह्म रूप अगी बुतावै । सोवतै रहै है यह कहै है कि, मैं सच्चिदानन्द हैं, सो मेरोवर जोहैं सच्चिदानन्द सो कुशलहै यह नहीं जानै हैं कि, ये सब तो रह गये सो मैं; नरजाउँगरिक माया ब्रह्मरूपी अगिही रहजायगा । वह। अगिमें तरी कुरिया है स्वस्वरुप ज्ञानकी सो जरिजाइगी । अथवं जब ब्रह्मास्मि में सुषुप्त होयगी तब मैं सच्चिदानन्द रूप यहू ज्ञान न रहिनइगो । याही ते तें बिकल है से यह कर जाते तेरी बस्तु है साहब में नवद; भनि सो उ* औरे रे रंगमें लगिबो तेरो रंग नहीं है श्रीरामचन्द्र रंगमें रंग यही तेरो रंग है ॥ ३ ॥ कुविजा पुरुष गले यक लागी पूजि न मनकी साधा । करत विचार जन्मगो खीस ई तन रहल असाधा ॥४॥ कुबिना पुरुष कहे अंगभंग पुरुष जो वह ब्रह्म है नपुंसक ताको एकमानिकै १क, एक ब्रह्मही है ताकेले में, हे साहबकी जीवरूपाशक्ति ! तँ लागी से जैसे नपुंसक पुरुषसंग स्त्रीकी साधनहीं पूनै है तैसै वह ब्रह्म में लग तुम्हारी साध नहीं पूनै है कहे वामें आनंद नहीं मिले है । वही ब्रह्मको विचार करत जन्म खास कहे वृद; जाइ है । तन कहे यह मनुष्य शरीर पाइकै असाध रहै है कहे साहबके मिलनको सुख नहीं पावै हैं ॥ ४ ॥ जानि बुझि जो कपट करत तेहि अस मंद न कोई । कह कबीर सव नारि रामकी मोजे और न होई ॥ ६ ॥ सो जानि बूझिके ने लोग कपट कैरै हैं कहे वह धोखा ब्रह्ममें लगै हैं तिन ऐसो मंद कहे मूह कोई नहीं है । सो कबीरजी कहै हैं कि, जहांभर चित् शक्ति जीव हैं ते सब श्रीरामचन्द्रकी नारी हैं तो मैं जानौ हौं याते मोते और २१