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(३२०) बीजक कबीरदास । जानि बुझिं जो कपट करतहै तेहि अस मंद न कोई । कह कृवीर रूक न लोई : नरहर लागी दुव बिकार बिन ईधन मिलै नबुझावन हारा। मैं जान तोहीं ते ब्यापै जरत सकल संसारा ॥ १ ॥ | हे नरहर दवलागी कहे तेरे स्वरूप की हरनवारी मायारूपी दवारि लगी है। हैं कैसाहै ? विकार बिन । तौ माया मोको काहेको लगी है ? तौ विना ईंधन को बुझावनवारी तोको नहीं मिल्यो, जो तोको समुझाइ देई कि, मैं बिन विकारको है जो मिलाहै सो नाना उपासना नाना मत रूप ईंधन डानर वारों मिला है । साहबको ज्ञान रूप जल डारै माया रूप दवारि कैसे बुझाई सो मैं जानौ हैं। या मायारूपी वारि व्रोहीते उत्पन्न भै अर्थात् मायादिक तोही ते भये ताहीमें सब संसार जरो जाइहै ॥ १ ॥ पानी माह अगिनिको अंकुर मिलन बुझावन पानी । | एक न जरै जरै नौ नारी युक्ति न काहू जानी ॥२॥ सो वह मायारूपी अग्रिको अंकुर पानीमें है कहे नाना वेद शास्त्रादिक बाणीमें है ते वेद शास्त्रादिकनके अर्थको बदलिकै साहवको छिपाइकै मायारूपी अग्निको प्रकट कियो औ तोकोऔरे औरेमें लगाइ दियो । अर्थात् वे सब मतनको फल ब्रह्लदै जाइबो बताइ दियो । वह अग्निको वुझावन को वेद शास्त्रादिकन को जे सांच अर्थहैं जल सो नहीं मिले है । अथवा जे वेद शास्त्रादिकन के सांच अर्थ मुनि जन लोग बनाइ गये हैं, बशिष्ठ संहिता, शुक संहिता हनुमत्संहिता, अगस्त्यसंहिता, सदाशिवसंहिता, मुन्दरीतंत्रादिक ग्रन्थ औ वेदशिरोपनिषद् विश्वम्भरोपनिषदादिक सांचे मतके कहनवारेते जल नहीं मिलैहै । सो जब वह आगि लगी तब अद्वैत करिकै बहुत समुझावैहै परन्तु एक वह आत्मा नहीं जैरै औ साहबमें ने नवधा भक्ति ते नव नारी हैं ते जरैहैं सोयह युक्ति कोई नहीं नान्यो कि आत्मा ब्रह्म नहीं होइहै औ साहब को जानै तौ वे नवधा भक्ति : न जै ॥ २ ॥