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(३४) श्रीकबीरजीकी कथा । तहैअढाईसेरवेरनिनिलावोचलेजावोयोंबहीरके । आयेघरमांझदेखिनिपटमगनभये नयेनयेकौतुकसाँकैसेरहैंधीरके । वारमुखीलईसंगममानोवाहीरंगरंगेजानोयहबातकरीउरतिभारके ॥ २७१ ॥ संतदेखिदुरेसुखभयोई असंतनिकेतबतौविचारिमन मांझ औरआयोहे । बैटीनृपसभातहांगयेपैनमानकियो कियोएकचीजउठिनलढर कायो है । रानानियशोचपरयोकह्या कहाकह्योतबजगन्नाथपंडापाँवजरतबचायॉहै । सुनिअचरजभारनृपनेपठायनरलायेसुधिकहीअजूसांचहीसुनायो है ॥ २७२ ॥ कहीराजारानीसोंजुबातवहसांचभईचिलागीहियेअबकहौकहा कीजिये । चले हीबनतिचलेशीशतृणबोझभारीगरेसकुल्हारीबांधीतियासंगभीनये । निकसेबजारकैडारदईलोकळाजकियों मैं अकानछिनछिनतनुछीजिये। टूरिजेकबीरदेखिदैगयोअधरमहाआयोउठिगेकह्यौडाारमतिरीझिये ॥ २७३ ॥ देखिकैप्रभावफेरिउपज्योअभावदिजआयोबादशाहजूसिकंदरसोनामहै । विमुखसमूहसंगमाताहू मिलाइलईनाइकैपुकारे जूदुखायोसबगाँवहै । लावोरेपकरवाकेदखौरेमकरकैसोअकरमिटाऊंगाढ़ेजकरतनावहै । आनिठाढ़कियेकाजीकहतसळामकरौजानैनसलामनामेरामगढ़पावहै ॥ २७४ ॥ बांधिकैनीरगंगातीरमांझबोरिदियोजियौतीर ठादकहैयंत्रमंत्रआवहीं । लकरीनमांझडारिअगिनिप्रजारिदईनईमानभई देहकंघनलजावहीं । विफलउपाइभयेतऊनहींआइनयेतबमतवारो हाथीआनीकेझुकावहीं । आवतनदिगचिचारिहारिभाजिजाइआयआपसिंहरूपबैठेशोभागावहीं ॥ २७५ ॥ | देख्यौबादशाहिभावकूदिपेरेगहेपाव देखिकरामातिमातभयेसब लोक हैं । प्रभुपैबचाइलीसैहमैंनगजबकीली गैसोईभावैगांवदेश ना भोग हैं । चाहँरकरामजाकोजपैआठौयामऔरदामसनकामनामेंभरेकाटिरोग हैं । आयेघरजीतिसाधुमिलेकरिश्रतिजिन्हैं हरिकी प्रतीतिवेईगायबेकेयोगहें ॥ २७६ ॥ होइकैखिसानेदिन निजचारिविप्रनके मूड़निमुड़ाइभेषसुंदरबनाये हैं। दूरदूरिगावनमेंनामनिकोपूछिपूछि नामजोकबीरजूकझूठेंन्योतिआये हैं ॥ आयेसवसाधुसुनिये तौदूरगयेकहूंचहूं दिग्निसंतनिकेफिरैहरिधाये हैं । इनहीकोरूपधरिन्यारेन्यारेठौरबैठेएऊमिलिगयेनीके पोखिकैरिझाये ॥२७७॥ आईअप्सराछरिबकेलियेबैसकिये हियेदेखिगाड़ोफिारगईनहींलागी है। चतुर्भुजरूपप्रभुआनिकैप्रगटकियोळियोफलनैननिकोबडोबड़भागी है। शीशधैरैहाथनसाथमेरेधामआवो गावोगुणराजालौंतेरीमतिपागी है। मगमेंहैजाइभक्तिभावकोदिखाइबहु फूलनिनँगाइपौट्टिमिल्योहरिरागी है ॥ २७८ ॥ इति ।