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(३१५) शब्द । षट दर्शन मिले पंथ चलायो तिर देवा अधिकारी। राजा देश बड़ो परपंची रइअत रहत उजारी ॥२॥ औ षट् दर्शन जे हैं ते मिलिकै नानापंथ चलावत भये । कोई योगीकैकै योग धारण करन लग्यो, औ कोई अनुभव कथिकै शून्य ज्ञान पंथ चलायो, अरु कोई नाना प्रकार के कर्म करने लगे, औ कोई नाना उपासना करने काग्यो, औं कई मैं ब्रह्महौं यह कहने लग्यो, औ कोई कर्त्त न्यारा है यह कहने लग्यों औ कोई मताड़िके आत्मा में स्थित भयो । या ब्रह्मांडमे ब्रह्मा विष्णु महेश अधिकारी हैं ते सत्र मतनके अधिष्ठाता हैं या हेतुते सत रज तमते कोई नहीं छुट्ये । औ ओई रानाहै ने हैं ब्रह्मा विष्णु महेश आ उनको देश जॉहै सत रन तम सो बड़ो परपश्ची है याहीते रइअत जे और सब जीव हैं तिनके अंन्तःकरण उजारि रहे हैं जो है भक्ति मोर, जो है ज्ञान मोर, सो उनको अन्तःकरण में नहीं होन पावै है ॥ २ ॥ इतत उत रहु उतते इत रहु यमकी सांट सँवारी। ज्यों कपि डोर वांधि वाजीगर अपने खुशी परारी॥३॥ तहिते इत उत कहे कहूं स्वर्ग जाइहै, कहूं नरक जाइ है, कहूं आपने उपास्य देवतनके लोक जाइ फिरि इहां आयकै उनहींकी उपासना करै है । पुनि जब उपासना भूलै तब पुनि पापकारकै नरक जाइहैं निनके वास्ते यमकी सांठ सँवारी कहे यमके दंडते नहीं बचैहै । जौने कपि कहे वाँदर को बाजीगर अपनी डोरि ते बांधैहै औ वह बांदर बाजीगरके वश द्वैगयो तब आपनी खुशी ते बाके बंधनमें परो रहै है नाना नाच नाचै है प्रथम चित् शक्ति में जगत्को कारण रूप वनो रह्यो याही भांति सब जीव माया ब्र। बश द्वैगयो, तब वहीं बंधन में अपनीखुशी ते परे रहे हैं; वही ब्रह्मको ज्ञान करे हैं मोको नहीं जाने हैं। ३ ।। यहै पेठ उत्पात प्रलयको विषया सवै विकारी ।। जैसे श्वान अपावन राजी त्यों लागे संसारी ॥ ४॥ यहै माया ब्रह्म उत्पत्तिं प्रलयको पेठहै । अरु संसारमें जे संपूर्ण बिषय हैं। तेई विकार हैं यात मोहिते व्यतिरिक्त जे पदार्थ संसार में ज्ञान योग वैराग्य