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(३१४) बीजक कबीरदास । श्रीकवीरजी साहब की उक्तिमें कहेहैं गुरुमुख । अथ छप्पन शब्द ॥५६॥ नरको नहिं परतीति हमारी । झूठे बनिज कियो झूठे सन पूजी सवै मिलि हारी ॥१॥ षट दर्शन मिलि पंथ चलायो तिर देवा अधिकारी। राजा देश बड़ो परपंची रइअत रहत उजारी ॥२॥ इतते उत औ उतते इत रहु यमकी सांट सँवारी। ज्यों कपि डोर बांधि बाजीगर अपने खुशी परारी ॥३॥ यह पेठ उत्पत्ति प्रलय को विषयी सवै विकारी। जैसे श्वान अपावन राजी त्यों लागी संसारी ॥ ४॥ कह कबीर यह अद्भुत ज्ञाना मानो वचन हमारो। अजहूं लेहुं छोड़ाय कालसों जो घट सुरति सँभारो ॥६॥ नरको नाहं परतीति हमारी। झूठे बनिज कियो झूठे सन पूजी सबै मिलि हारी ॥१॥ | सबते गुरु परम परपुरुष पर श्रीरामचन्द्र कहै हैं कि, नरको हमारी पर तीति नहीं है सब लोग झूठेसों झूठी बनिज करत भये । कहे झूठे ब्रह्ममें ने लगावै हैं ऐसे ने गुरुवा लोगहैं सौदागर तिनसा झूठी बनिन करतभये कहे झूठे ब्रह्मम लगावै हैं अर्थात् जो वे उपदेझ कियो कि, “तुमहीं ब्रह्महौ सो झूठा है। तास बनिज करिकै पूजी सब हारिगयो कहे आपनी आत्माको ज्ञान भूलि गयो । कौन ज्ञान भूलिगये कि, यह आत्मा तो मेरो सदाको दास है बहूमें मुक्तहूमें हैं ताम प्रमाण॥ दासभूताः स्वतः सर्वे ह्यात्मानः परमात्मनः । नान्यथा लक्षणन्तेषां बेध मोक्ष तथैव च ॥ इति पद्मपुराणे ॥ १ ॥ जो कही भुलवाइ कौन • दियो ? सो आगे इसका समाधान करते हैं ।