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(३१२) बीज कबीरदास । छेरी ताका पति बोकरा है से छागर कहावै । तेई माया में लपटे किसान गुरुवा लोग सो जोतिकै उपदेश रूप धान बोवत भये । औ तौने नवानावके जे भलुइया कहें भुलावनहारे पण्डित तेई चाखुर फेरै कहे निरवै हैं अर्थात् ताते बृत्ति करिकै वेद जो साहब को बतावै है ताको अर्थ फेरिडोरै हैं ॥ २ ॥ कागा कपरा धोवन लागे बकुला किररै दांता। माछी मूड़ मुड़ावन लागी हमहूं जाब बराता ॥३॥ नाना पाखंड मतमें परे ऐसे जे हैं: मलिन पाखंडी जीव तेई काग हैं । ते कपरा धोवनलगे कहे सबको उपदेश करै हैं कि, हमारेमत में आवो तौ हम तुम्हारो अंतःकरण शुद्ध करिदेईं ! औ रूपकपक्षमें जब बरात जाइहै तब सबुनी ऊरिकै लोग जाइहैं ताते यहां सबुनी करिबो लिख्यो । अरु जिनके अंतःकरणरूपी धोवनको वे उपदेशकियो तई बकुळाभये कहे ऊपरते तो वेष बनाये चन्दन टोपी दिये हैं औ अंतःकरण मालन बिषयमें चित्तलगाये रहै हैं । जहां कोई संत मत कहन ढंगै है ताको खण्डन करिडोरै हैं । दांत किरै हैं कहे कोप कैरै हैं जैसे चकुला ऊपरते तोस्वच्छ है औ नदी के तौर मछरी खाइबेको बैठे है । भीतर बासना मलीन भरी है; हंस आवै है तिनको डेरवाय कै बैठन नहीं देइहै दांतकिररै है! तैसे बरात जब चलै है तब कारिंदा कामकाजी सफेद कपरा पहिरि दांत किररै हैं कि,यह कामकरो वह कामकरो कहा बैठे हौ यह रिस करै । औ माछी कहे जो माया ते क्षीण हैबका बिचारकरै हैं, ते माछी कहवावै हैं । अर्थात् मुमुक्षु ते नाना मतके जे गुरुवा लोग हैं तिनके यहां मूड़ मुड़ावै हैं कि, हमहू बरात जाब कहे हमहूं मुक्त होब । सो वहां मुक्तितो पायो नहि पर गुरु वनकी मीठी बाणी में परिकै आपने को ब्रह्म मानत भये तेहिते स्वस्वरूपको ज्ञान न रहिगयो मायामें फेंसिगये औं रूपक पक्षमें दुलहा के संगती जे हैं ते बार बनवावै हैं ॥ ३ ॥ छेरी बाघहि ब्याह होत है मंगल गावै गाई । बनके रोझ धै दाइज दीन्हो गोह लोकंदै जाई ॥ ४॥