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                श्रीकबीरजीकी कथा ।                         
                                     (३३)

( श्रीनभाजीके भक्तमालले टीकासहित ) ॥ मूल । कबीर कानि राखी नहीं वर्णाश्रमषटदरशनः॥ भक्तिविमुखजोधर्म सोअधर्मकरिगायो । योगयज्ञव्रतदानभजनविनतुच्छदिखायो ॥हिंदुतुरकपमानरमैंनी सबदीसाषा । पक्षपातनहिं वचनसबाहिंकेहितकीभाषी॥:आरूढ़दशाहृजगतपर मुखदेखीनाहिंनभनी । कबीरकानिराखीनहींवर्णाश्रमषटदरशनी ॥ ६० ॥ | टीका । अतिहीनॅभीरमतिसरसकवीरहियोलियोभक्तिभावनातिपतिसबटारिये॥ भईनुभवाणीदेहतिलक रवानीकरौकरीगुरुरामानंद गरेमालधारिये। देखनहींमुखम रोजांनिकैमलेच्छमकोजातन्हानगंगाकहीमगतनडारिये रजनीकेशैशमयआवेशसोंचलतापपरै पगरामकहैंमंत्रसोंविचारिये ॥ २६५ कीनीवहीबातमालातिलकबनाइगातमानिउतपातमातशोर कियोभारिये । पहुँचीपुकारामानंदजुकेपासआइकहीं कोऊपूछेतुमनामलैउचारिये । लावोज़पकरवाकोकबहमकियोशष्यलायैकरिपरदामें पूछीकहिडारये। रामनाममंत्रयहीलिख्योसबतंत्रनिमें खोलिपटामिले सांचोमतउरधारिये ॥ २६६ ।। | बुनैतानेहियराममड़रानोकही कैसेकैबखानावहीरीतिकछुन्यारिये । उतनाहीकरै तामेंतनुनिरवाहहोइभोइगइऔरैबातभक्तिलागीप्यारिये । ठाडैमेडीमांझपटबेवनलैजनकोऊआयोमोकोदेहुदेहमेरीहैउघारिये । लग्योदेनआधोफारआधोसों न कामहोयदिया सबलबोजोपैयहीउरधारिये ॥ २६७ ॥ तियामुतमातमगदेखभूखे आवें कब दबिरहेहाटनमेंलॉवैकहाधामको । सांचोभक्तिभावजानीनिपट सुजानवेतों कृपाकेनिधानगृहशोचपरेउश्यामको । बालदलैधाये दिनतीनियोंबितायेजब आये धीरडारिईलहेउ हैपरामको । माताकरैशोरकोऊहाकिममरारिबांधे डारोबिनजाने सुतनहीं लेतदामको ॥ २६८ ॥ गयेजनदोइ चाहिँटिकेलिवाइलायेआयेवरसुनी बात जानिप्रभूपीरको । रहेसुखपाइकृपाकरीरघुराइदक्षिणमंलुटाइसबबोलिभक्तभीरको । दयाछड़ितानोबानोसुखसरसानोहयकियेरोषधायेसुनिविपतनिधीरको । क्योंरेतेजुलाहेधनपायोनाबुलायेहमैं शूद्रनिकोदियोजावोकयोंकबीरको ॥२६९॥ | क्योंजुउठिनाउँकछुचोरीधनलाउँनितहरिगुणगाउँकोउराहनमारी है। उनके लैमानकियोयाहीमें अमान भयो जोपैनाइमाँगा हमैंतौहीतैजियारीहै । घरमेंतोनाहामंडीजॉउतुमरहौबैठे नीठिके छुड़ायोपैड़ोछिपैव्याधिटारीहै । आयेषभुपद्रव्य लायसमाधान कियोलियोसुखहयभक्तिकीरितउजारी है ॥ २७० ॥ ब्राह्मणकोरू पधारिआयेछिपिबैठेजहांकाहेकोमरतभूखौनावोजु कबीरके । कोऊ जाइदारताहिदे.