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शब्द । तब छेरी जो है माया से बीगा जो है जीव ताको खाइ लिया जीवको बीगा काहेते कृयो कि, जो जीएने स्वरूप को जानै तौ छैरी जो है माया ताको नाशकै देई से दी है। अपने पेमें डादिलियो ! अरु छैरी मायाको कहै हैं तामें प्रमाण ॥ * अजामेकांलोहितशुक्लकृष्ण ) इत्यादि । सो लोक | प्रकाश जो उदधि तहाते निकारकै चौड़ी छांछरी जो संसार तामें मच्छरूप जीव घर मायाते बनवायो अर्थात् संसारी है गयो ॥ २ ॥ मेढक सर्प रहै इक संगै बिल्ली श्वान बियाही । नित उठि सिंह सियारसों जूझै अद्भुत कथो न जाही३॥ वह कैसो संसारकै जहां मेटुक ( जीव ) औ सर्प ( काल ) एकैसंगरहे हैं। नाना शरीरंनको काल खात जाईंहै पुनि पुनि शरीर होत जाइहै । अरु बिल्ली जो है मानसी वृत्ति सो श्वान स्वानुभवानन्द ताको बिवाहीगई अर्थात वाही में लगिगई । वृत्तिकोबिल्ली काहेते कह्या कि, बिल्ली जहां गोरस देखै है हैं जाइहै औ यह वृत्ति जो है सौऊ जैहै रस जो है सुख सो देखैहै तहैं नाइहै । सो स्वानुभवानन्दमें बहुत सुख देख्यो याते वाहाको बिवाहीगई । तब नितउठिकै सिंह जो ज्ञान सो सियार अज्ञानते मारो नाइहै । जो कहो ज्ञान तो अज्ञानको नाश करनवारो है अज्ञानते ज्ञान कैसे नाश होइहै ? सो वह जो ब्रह्मज्ञान कियो कि, हम ब्रह्म हैं सो अद्भुत है कहिबेलायक नहीं है नेति कह अर्थात् कोई जीव ब्रह्म नहीं भयो यह कौनेहू शास्त्र पुराणमें नहीं कह्यो कि, फलानो जीव ब्रह्म है गयो याही ते मूलाज्ञानमें ठहराये हैं ॥ ३ ॥ संशय मिरगा तन बन घेरे पारथ बाना मेलै। सायर जरै सकल वन डाहै मच्छ अहेरा खेलै ॥ ४॥ येई दुइतुक अधिकसे नानेपैरैहैं परन्तु पोथीमें लिखो लख्यो अर्थ करिदियो सो शरीरबनको संशय जो मिरगा है सो घेरे है औ पारथ जे हैं गुरुवा लोग ते संशयरूपी मृगाके मारिबेको बाण जो है नानाप्रकारका उपदेशरूप बाणी ताको मैलैहैं सो उनको बाणीन ते संशय तो नहीं दूरि होइहै । संशय कहा है सो कहै हैं सायर जो है बिवेकसागर सो नरिजाइ है औ नाना शरीर ने