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( २९८) बीजक कबीरदास । अथ अड़तालीसवां शब्द ॥४८॥ पंडित देखो हृदय विचारी । कौन पुरुष को नारी ॥ १ ॥ सहज समाना घट घट बोलै वाको चरित अनूपा ।। वाको नाम कहा कहि लीजै ना वहि वरण न रूपा ॥२॥ तैं मैं काह करै नर बौरे क्या तेरा क्या मेरा। राम खोदाय शक्ति शिव एकै कहु धौं काहि निवेरा ॥३॥ वेद पुराण कुरान कितेवा नाना भाँति वखानी। हिंदू तुरुक जैनि औं योगी एकल काहु न जानी ॥ ४ ॥ छः दरशनमें जो परवाना तासु नाम मन माना । कह कबीर हमहीं हैं बौरे ई सब खलक सयाना ॥५॥ पंडित देखो हृदय विचारी । कौन पुरुष को नारी १ सहज समाना घट घट वोलै वाको चरित अनूपा ।। वाको नाम कहा कहि लीज ना वह बरनरूपा २॥ हे पंडित! तुमतौ सारासारको विचार करौ हैं। हृदयमें बिचारि कै देखी तो कौन पुरुषहै कौन नारीहे वह आत्मा ते न पुरुष न नारी है ॥ १ ॥ जो कहीं वटघटमें सहज जीव ब्रह्म समाइ रह्योहै वाको चरित्र अनूप सोई हमारो स्वरूप है तो वाको नाम कहां कहि लीजै बाको तो न बर्ग है न रूपहै वह तो धोखाहै ॥ २ ॥ तें मैं काह करै नर वौरे क्या तेरा क्या मेरा ।। राम खोदाय शक्ति शिव एकै कहु धौं काहि निबेरा ३ है जो हैं मैं कहीही कि, मैं मैं आह्यो, मैं हैं आह्यो एकही ब्रह्मतो है हैं मैं कहां करें है । विचारदेखु तौ क्या तेराहै क्या मेराहै सव साहबका तौ ।