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शब्द ।। | ( २९३ ) मूई कह जिनके शिखा नहीं है मुसल्भान लोग तिनका एकऊ नहीं छोड्यो । अवहूं भर वह आदिकहे आद्या जो मायाहै सो कुँवारीही बनी है अर्थात् हिंदू मुसल्मानको आपही बशकै लियो है इनके वश नहीं भई ॥ ३ ॥ मायिक न रहै जाइ न ससुरे साई संग न सोवे ।। कह कवीर वे युग युग जीवें जाति पांति कुल खोवै॥४ अम मायिक जो है शुद्ध आत्मा जाके उत्पत्ति भईहै माया तहां तो रहतही नहीं है वहां तै। जीवके साहबको अज्ञान रूप कारण मात्र रह्योहै । औ सासुर जो है लोक प्रकाश ब्रह्म जहां जीव मान्य है कि, ब्रह्म मैंही हों, सो धोखाहै । तह नहीं जाइहै औ वही साई कहे पतिहै काहेते कि, वही मायासबलित होइ है त३ नगद होई है नाके संग नहीं सोवै काहेते कि, वहतो धोखई है औ बह माया धोखा है जो कछु बस्तु होइ तब न वाके संग सवै । श्रीकबीरजी कहै हैं कि, सब जगतको माया लपेटि लिया है । जे जीव साहब औ साहबकी जाति आपको मानै हैं औ अपनी जाति पांति कुल खावै हैं सोई मायाते बचे हैं। औ युग युग जियै हैं और तो सबको माया खाइही लियो है अर्थात् उनहीं को ननन मरण नहीं होय है ।। ४ ।। इति चवालीसवां शब्द समाप्त । अथ पैंतालीसवां शब्द ॥ ४५ ॥ कौन मुवा कहु पंडित जनासो समुझाय कहौ मोहिंसना१॥ मूये ब्रह्मा विष्णु महेशा । पावती सुत मुये गणेशा ॥२॥ मूये चन्द्र सुये रवि केता।मुये हनुमत जिन्ह वाँधी सेता३॥ मूये कृष्ण सुये करतारा। यक नमुवा जो सिरजन हारा॥४॥ कहै कबीर सुवा नाहिं सोई । जाको आवागमन न होई॥4॥