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{ २८६) बीजक कबीरदास । पावक कह पाव जो दाहै जल कहे तृषा बुझाई । भोजन कहे भूख जो भाजै तौ दुनियां तरिजाइ ॥२॥ नरके संग सुवा हरि वोलै हरि प्रताप नहिं जाने। जो कवहूं उड़जाय जंगलको तौ हरि सुरति न आनै॥ जो पावकके कहे दाह पावतो तो जीभ जरिजाती, औ जलके कहे तृषा बुझाइ जाती, औ भोजनक कहते भूख भाजिनाती तौ, रामके कहेते दुनियै तरिनाती ॥ २॥ नरके पढ़ाय सुवा राम राम कहैहै औ श्रीरामचन्द्रको प्रताप नहीं जानै है, काहेते कि, जब कबहूँ जंगलमें उड़ि नाय है तब रामकी सुरति नहींकरै है । ऐसे जोतुम रामनाम कहि हरिको प्रताप जाना चाहोगे तो कैसे जानौगे ॥ ३ ॥ विन देखे विनु अरस परस बिनु नाम लिये का होई। | धनके कहे धनिक जो होतो निर्धन रहत न कोई ॥४॥ विना देखे बिना स्पर्श किये नाम लिये कहा होइहै । अर्थात् जो कोई दूरहोइ औ देवै न स्पर्श न होइ औ जो वा नामलेइ त का जानि लेइहै ? नहीं जानै है । धनके कहेते कोई उर्निक वैजाता है। निर्धनी कोई न होतो ऐसे नाम लिये जो मुक्तिक्षेत तै। सव मुक्कै होइजात । सो हे पंडितो तुम ऐसे असंगत दृष्टांतदैकै यहबाद बदौहौ सो झूठ है। काहेते कि, रामनाम तौ मन वचन के परे है औ ये सब बचन में आवै हैं । औ वह राम नाम साहबके दियेते स्फुरित होइहै। यैह रामनाम जपते औ ये सब अनित्य द्वैजाइहैं ॥ ४ ॥ सांची प्रीति विषय मायासों हरिभक्तनकी हासी। कह कवीर यक राम भजे विनु वांधे यमपुर जासी ॥८॥ । सो कबीरजी कहैं हैं कि, हे नास्तिक पण्डितौ ! विषय मायासों सांचीप्रीति करौहौ । ऐसे ऐसे कुबाद बदि कै हरिभक्तनकी हासी करौहौ; नाम रूप लीला धामको खण्डन करिकै । सो एक जे परम पुरुष श्रीरामचन्द्र हैं तिनके नामके बिना भजन किये वांधे मोगरन की मार सहत यमपुरहीक जाहुगे ।