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३ ई { २८४) बीजक कबीरदास । अचरज यक देखा संसारासोनहा खेद कुंजर असवारा ॥३॥ कह कबीर सुनो संतो भाइ। यह संधि कोई विरलै पाई ॥४॥ ऐसे हरिसों जगत लरतुहै। पंडुर कतहुँ गरुड़ धरतुदै ॥१॥ जैसे पूई कहिआये ऐसे रक्षक हरिसों जगत् लरतुदै कहे विरोध करते हैं औ ने उनके भक्त उनको बतावै हैं तिनके मतके खंडन करै है। सो हे मूट । पंडुरकहे पनिहां पियरस कहूं गरुड़को धरतुहै ? जो ‘डेड्डेभ' पाठहोय ते डंडुभ निहां सर्पका नामहै । सो रामोपासना गरुड़ है सो और मत जे सर्प हैं तिनको कहां खं इनकीन होइहै वही सबको खंडन करनवारो है । जो वाको ( रामोपासना को ) मत अच्छी तरहते जानो होइ है ॥ १ ॥ मूस विलारी कैसे हेतू । जंबुक कर केहरि सों खेतू ॥ २ ॥ सो हे जो ! तुम्हारे ज्ञानत मूल है औ गुरुवालगन को ज्ञान विलारीहै। ने और और मतभे लगाकै हैं तुमको और और मतमें लगाईंकै खाइलेइंगे तिनसों तुमस कैसे हेतुभयो । जंबुक जो सियार से केहरि जो सिंह है तास खेत करै है कहे है । सो जंबुक अज्ञान है जो सिंह तुम्हारो जीव सोलरैहै। वह सिंह जीव कैसो है अज्ञान को नाश कै देनवारोहै अर्थात् जब आत्माकों ज्ञान होइ है तब अज्ञान नाश द्वै जाइहै ।। २ ॥ अचरज यक देखा संसारा। सोनहा खेद कुंजर असवारा॥३॥ कह कवीर सुनो संतो भाई। यह संधि कोई विरले पाई ॥४॥ सो हम यह बड़े आश्चर्य देख्योंहै । सोनहा जो कुकुर सो कुंजर के असवारको खेदै है । सो नानामतवारे जे हैं तेई कुत्ते हैं ते कांउं कांउं कहें शास्त्रार्थ करिकै कुंजरके असवार जे हैं रामोपासनाके साधक तिनको खदैहैं । कहे उनसों वे कळनहीं पावै । यहां कुंजर मन है ताका परम पुरुष श्रीरामचन्द्र लगाइदियेहैं औ आप असवार हैं ॥ ३ ॥ सो श्रीकबीरजी कहे हैं कि,