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३ - शब्३ । | ( ३८१) अथ सतीसवाँ शब्द ॥ ३७॥ हरिठगठगत सकलजगडोला।दनकरतमोसोमुखहुनवोला वालापनके मीत हमारे । हमैं छोड़ि कहँ चले सकारे॥२॥ तुम अस पुरुष हीं नारि तुम्हारी।तुम्हरिचाल पाहनहुँतेभारी माटिक देह पवनको शरीराहारि ठग ठगतसोडरल कवीरा हरिठगठगतसकलजगडोलागिवनकरत मासोंमुखहुनबोला। | जीव कहे हैं कि, हारको ठग ने गुरुवारै सो ठगहारी कारकै सब जीवन को टगतकहे हरिते विमुख करत जगडोलाकहे संसार में फिरै है । अरु जब गमनकरन यस वारेलियो तब मोसों मुखहूते न बोले कि, एतदिन जौने जौनमें लगेरहे व्रझमें अथवा जीवात्मामें ते ने बचायो । यह खबरकहि सतुझाय न दियो कि, हम को धोखा द्वैगयों तुमहूं धोखामें न परौ ॥ १ ॥ इलाके मीत हमारे । हमें छोड़ि कहें चले सकारे ॥२॥ तुमअवशुरुष हौं नारितुम्हारी।तुम्हारी चालपाहनहुँतभारी । सो तुम बालापनके हमारे मीतही नवभर रह्यो जियो तबभर हमको धोखाहीमें लगायेरह अब हमैं छोडिकै सकारे कहे हमहोते आगे कहांजाहुगे काहेते कि, तुमतो काहू को रक्षक मान्य नहीं वही धोखामें लगेरहे, आपही को मालिक मानेरहे, अब तुम्हारी रक्षा कौन करै ? सो जब तुम्हारी कोई न कियो यम लैहीगये तौ जौन ज्ञान हमको दिया है तौनेते हमारी रक्षाकौन करैगो ॥२॥ तुम ऐसो हमारे पुरुषहै तुम्हारी हम नारी हैं काहेते कि, बीजमंत्र हम को उपदेश दियो है सो तुम्हारी चाल पाहनौते भारी है कहे पाहनौ ते जड़ है तेहिते साहवको भुलाइदियो ॥ ३ ॥ माटिकि देह पवनकोशरीर हारिठग ठगतसोडरलकवीरा४ माटीकी यह देह है सो स्थूल शरीर नाशवानहै । पवनको शरीर सूक्ष्म शरीर है सो मनोमय चंचल है ज्ञानभये वही नाशमानहै तामें स्थित जे कंबर कहे