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(२७८) बीजक कबीरदास । अथ पैंतीसवां शब्द ॥ ३५ ॥ | हरि मोरपीवमैंरामकीवहुरियाराममोरवड़ामैतनकीलहुरिया | हरिमोररहँटामैंरतनपिउरियाहिरिकोनामलैकातलबहुरिया २ छःमासतागवर्षदिनकुकुरी।लोगबोलेभलकातलवपुरी॥३॥ कहै कबीर सूत भल कातारहँटा न होय मुक्तिको दाता॥४॥ हरि मोरपीवमैरामकीवहुरियाराममोरबड़ाबैंतनकीलहुरिया | मार पीव हरि है । पीव कहे वे मोको पियारहैं हैं उनकोऊ पियार हैं । अरुमैं परमपुरुषपर श्रीरामचन्द्र की बहुरिया कहे नारी हौं । यहां नारी कह्यो सो यह जीव साहवकी चित्रंशाक्त है तामें प्रमाण कबीरजके आदि टकसार अन्थ को ॥ “आतम शक्ति सुवश है नारी । अमर पुरुष जहि रची धमारी ॥ १ ॥ दूसरो प्रमाणसायरबीजकको ॥ * दुलहिनि गाऊ मंगलवार । हमरे घर आये राम भतार ॥ तनरति करि मैं मनरति कारह पांच तत्व बरातः । राम देव मेरे व्याहन ऐहैं मैं यौवन मद माती ॥ सरिर सरोवर वेदः करिहौं ब्रह्मा वेद उचाराराम देव संग भांवरि लेह धन २ भाग हमारा ॥ सुर तेंतीसौ कौतुक आये मुनिवर सहस अठाशी । कह कवार हम व्याह चले हैं पुरुष एक अविनाशी ॥ २ ॥ अरु श्रीरघुनाथजी मारबड़हैं अरु मैं तनकी लंहुरियाहाँ, कहे उनके शरीर सर्वत्र व्यापक बिभुहैं औ मैं अणुहौं तामें प्रमाण ॥ अणुमात्रौप्ययंजीवःस्वदेहव्याप्यतिष्ठति । इतिस्मृतिः ॥ १ ॥ हारमोररहँटामैंरतनपिउरिया।हरिकोनामलैकातलवरिया । अरु हरिजे परमपुरुष श्रीरामचन्द्र हैं ते मोर रहँटा कहे, चित् अचित्रूपते जगत्वोई हैं । अरुमैं रतनपिउरियाहौं यह जगत् जीवंही के वास्ते बन्योहै। ‘जीव सूत ढुकै लपटि रहै हैं । मैं रतनकी पिउरियाहौं तामे मैं नहीं लपटौहौं। हरिजे श्रीरामचन्द्र तिनका नाम लैकै बहुरिया कहे उलटिकै मैं कात्यो अर्थात् जगत्को जगद्रूप करिकैनहीं देख्यो जगत्को चित् अचितरूप कारकै देख्या है। रामनाममें वहुरिकै साहब मुखअर्थ देख्यो जगत् मुखअर्थ नहीं ग्रहणक्य ॥२॥