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( २७६) बीजक कबीरदास । | अथ चौंतीसवां शब्द ॥ ३४ ॥ हरिजन हंस दशा लिये डोलें।निर्मल नाम चुनी चुनि वोलें। मुक्ताहल लिये चोंचलोभावै।मौन रहै की हरि गुण गावै॥२॥ मान सरोवर तटके वासीराम चरण चित अंत उदासी ॥३॥ काग कुबुद्धि निकट नहिं आवै प्रति दिन हंसा दर्शन पावै॥ नीर क्षीरको करै निवेराकह कबीर सोई जन मेरा ।। ६॥ | जे साहबको नहीं जानै हैं तिनको कहिआये अब जे साहबको जानै तिनकी दशा कहै हैं । हार जन हंस दशा लिये डालें।निर्मल नाम चुनचुनी बोलें। हरिने. परमपुरुष पर श्रीरामचन्द्रहैं तिनके जे जन हैं ते हंस दशा जो है। शुद्धजीव पार्षद रूपता तौनी दशाको लिये सर्वत्र डालै हैं कहे फिरे हैं । यहां हरि जो कह्या ताका हेतु यह है कि, अपने भक्तनकी सिगरी बाधाहरै सोहरि कहावै है । सो परमपुरुष पर श्रीरामचन्द्र उनकी सिगरी बाधा हरिलेइहैं तब तिनके जुन सुख पूर्वक संसारमें फिरै हैं, उनको संसार स्पर्श नहीं करै है। अरु के नाम माया सवलित है तिनको छोडिदइहै । निर्मल जो नाम राम नामहै मन वचनके परे अमायिक ताको चुनिचुनि कहे साहव मुख अर्थ ग्रहण करिके औ संसारमुख अर्थ छोड़िके बोलै है कहे रामनाम उच्चारण करै हैं। यहां मनचलके परे जो नाम है ताका कैसे बॉलै है ऐसो जो कहो तो ये हंस दशालिये डोलै है कहे जब शुद्ध जीव रहिनाय है तब साहब अपनी इन्द्रिय देईहै। तिनते तौने नामको बोले है। जैसे सूमा जरिजाहै तब वाकी ऐंठनभर हिजाइहै । तैसे यहशरीरकी आकृतिमात्र रहि जाइहै वह पार्षदही शरीर में स्थितरहें। जब शुद्ध शरीर है जाई है तब आपनो पार्धदरूप पावैहै यह आगे लिखि आये हैं॥१॥ मुक्ताहललिये चोंचलोभावै । मौनरहै की हरिगुणगावै॥२॥ हंस मुक्ताहल चोंच में लिये बच्चनको लोभावै है नौन मांगे है ताके मुंहमें डारिदेइँहै । ऐसे साधुन के मुखमें पांचमुक्तिहैं १ सामीप्य २ सारूप्य ३