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(२७४) बीजक कबीरदास । रूप जो वह धोखाब्रह्म है ताको रच्यो तामें मिलिकै तिरगुण जे सत रज तम हैं तिनका तिहारे फांसिबेको प्रकट कियो । सो तीनों गुणाभिमानी जे तीनों देवता हैं अरु पाखंडरूप जो धोखा ब्रह्म है तामें सब भूलिगये । घरको खसम जब स्त्रीको बधिक कहे दुःख देन लाग्यो मारन लाग्यो तब स्त्री कहा करै । तैसे जो राजा प्रजाको बाधिक कहे मारन लाग्यो दुःख देन लाग्यो त बिचारे प्रजा कहा करें । सो यह मनते। सबको मालिक द्वै रह्योहै सो यही ने सबको दुःख देन लाग्यो तै। जीव कहाकैरै ॥ २ ॥ भक्ति न जानै भक्त कहावै तजि अमृत विष कैलिय सारा। आगे बड़े ऐसही भूले तिनहुं न मानल कहा हमारा ॥३॥ | भक्तिको तो जाने नहीं हैं भक्त कहाँव हैं। अमृत जो है परमपर पुरुष श्रीरामचन्द्रको भाक्त ताको छोड़िकै विष जो है और और की भक्ति ताकी सारमानि लिये है सो आगे जे बड़ेवड़े द्वैगये हैं तेऊ ऐसेही भूलिगये हमारो कह्यों नहीं मान्यो साहबकी भक्ति छोड़िके और की भक्ति करके संसारही में परतभये ॥ ३ ॥ कहल हमारा गांठी बँधो निशि वासरहि होहु हुशियारा। ये कलिके गुरु वड़ परपंची डारि ठगौरी सव जग मारा४ । सो हमारी को गांठीबांधो । जो अबहूं हमारो कह्यो न मानौगे साहबकी भाक्त न करोगे तो संसारही में परौगे । कलियुगके ने गुरुवा हैं ते बड़े परपंची हैं सब जगका ठगौरी कहे ठगिकै परमपुरुष पर जे श्रीरामचन्द्र तिनकी भक्तिकों छोड़ाइकै और और मतनमें डारिदेइहैं । सो निशिबासर हुशियार रहो अर्थात् निशिबासर रामनामको स्मरण करतरहो साहब के जानतरह गुरुवा लोगनको कहा न मानो ॥ ४ ॥ वेद किताव दोय फंद पसाराते फंदे पर आप विचारा। कह कवीर ते हंस न विछुरे जेहि मैं मिलो छोड़ावन हारा॥ | वोई ने गुरुवालोग ते ये वेद किताबको फंदा पसारि कै नाना मत में गुरु आई करतभये । सो वहाफंदमें आप परतभये औ औरहू को वहीफंदमें डाारकै नानाम