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(२७२) बीजक कबीरदास । शरीर में शिकारखेले है । पारथ कहे शिकारी जो औं सो वोटालेइहै अर्थात् नाना उपासना नानाज्ञान करत फिरै है पै मन तोको नहीं छोड़े है । साउज ते नहीं बेचैहै। वाणी रूप जो है पानी नानाशास्त्र तौनेमें(. भूभुरि जोसूर्यनके तापते तपित भूमि होयहै सोभूभुरि कहावै है; ऐसे संसार तापते तपितजो)तेरा अंतःकरण सो तलफिगयो अर्थात् अधिकअधिक शङ्का होतभई तिनते आधिकतप्त भयो शीतल न भयो काहेते कि, धूरि जो सूखा ब्रह्मज्ञान सो हिलोरा देनलग्यो कहेशास्त्रनमें वही धोखा ब्रह्मही देखपरन लग्यो । शास्त्रनको तात्पर्य साहब तिनको न जान्यो॥२॥ धरती बर्षे बादल भीजै भीट भया पैराऊ। हंस उड़ाने ताल सुखाने चहले बीधा पाऊ।। ३॥ बुद्धिजहै सो धरती है काहेते सब मतनको आधारयही बाणारूप पानी बरसै है कहे नानामतनको निश्चय कैकै प्रकट करै है । अरु यह बाणी जीवंही ते प्रथम निकसी है सो नीव बादल है सो भीनै कहे वोई मतनको ग्रहणाकियो । यह लोकोक्तिहै कि, फलाने फलाने में भीजिरहे हैं कहे आसक्त द्वैरहे हैं । भीट चारो वेद मर्यादाते पैराउदैगये कहे उनकी थाह कोई न पावतभयो अर्थात् तात्पर्य कारकै जोपरमपुरुष श्रीरामचन्द्रको वर्णनकरेहै सोकोई न पावतभयो । ताल सूखे होस उडैहै यहां हंसउड़े तालसूखे हैं जब हंस उड़ो कहें यहनीव निकसिगयो तवताल जोशरीरहै सोसूख गयो । तब बासना जेहैं तेई चहला हैं तिनमें पँउ बँधिरह्यो । जैसे तलाउ जबसूखेउ है पुनिचौमासेमें जब जल बरस्यो तब जस की तस द्वैगयो, तैसे बासनामें पाँउहँसिरह्योहै दूसर शरीर जब पायो तब फिर वही शरीरमें तलाउमें हंसीव बूड़न उतरान लग्यो है । सो भाव यह कि, उड़नको तो करै है पर शरीर तालते अंतै नहीं जाइ सकैहै कोई योनियॆमें रहै है ॥ ३ ॥ जौलागि करडोलै पगचलई तौलगि आश न कीजै ।। कह कबीर जेहि चलत न दीखे तासु वचन का लीजै॥४॥ जबलग पाँउ चलैहै करडालै है कहे शरीर बनी है तबलगि गुरुवालोगनकी आश न करिये जो आश करैगो तो याहीभांति बँधि रहैगा । सो कबीरजी कहैं।