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       कबीरजीकी कथा । (२९)
दोहा-तहँ कोउ भूपति बंधु इक, कीन्हे रहे विरोध ॥
ताहि पकारि ल्यायो सदल, करि चहुँ दिशि अवरोध२८
ब्रह्मदेवके भो सिध देवा । नरहारे देव तासु सुत भवा ॥ 
नरहरिके भइ भेदसुधन्या । व्याहीसो शिरनेतन कन्या ।।
नरहार वस्ये कछुक दिनकाशी । भेदचल्यो लै दल अरि नाशी ॥ 
भयो शालिवाहन सुभेद सुत । विर सिंहदेव तासु सुत नृप नुत ।।
भो विरासंह महान भुवाला । वस्या प्रयाग आइ तेहि काला ॥ 
लियो अमल सब देशन काहीं । लाख सवार रहैं सँगमाहीं ।।
वीरभानु सुत भो पुनि ताके । राजाराम भये तुम जाके ।।
जबै प्रयाग देश चहुंओरा । अमल्यो विरासंह निजभुज जोरा॥ 
तबै प्रजा किय जाय पुकारा । दिल्ली शाह हिंमाऊद्वारा ॥ 
आये कोउ कबीर बघेला । लाख सवार चले गमेला ।। 
अमल कियो सो मुलुक तुम्हारा । सो सुनि शाह तुरंतसिधारा ॥
चित्रकूट आयो जव शाहा । चलन लग्यो विरासंह नरनाहा ।।
दोहा-वीरभानु तब आयकै। वारन कियो बुझाइ ॥
तुम न जाहु म्लेच्छहि मिले। ऐहै सो इतधाय ॥ २९ ॥ 
तव पुत्रहि विरसिंह वुझाई । चल्यो तुरंत निशान बनाई ॥ 
चित्रकूट विरसिंह सिधारा । सुनत शाह आगू पगधारा ॥
दोउदल भये बरोबर जबहीं । सादर शाह बोलायो तबहीं ॥
जब भूपति गो शाह समीपा । बिहँसि शाह कह सुनहु महीपा ।। 
कवन हेतु परजन दुखदीन्हा । काहे मुलुक हमारो लीन्हा ।।
तब विरसिंह बोल्यो मुसकाई । कोहूस किय नहीं लाई ॥ 
जे हमही मारे तेहि मारे । अमल्यो तिनके देश अपारे ॥
कह्यो शाह कहूँ सुवन तुम्हारा । वीरभानु कहँ भूप हँकारा ॥ 
वीरभानु तब वाजि उड़ाई । परयोशाह हौदामहू जाई ॥ 
शाह उतर हाथीते आयो । वीरमानु गोदहि बैठायो ।।

सुनते भूपति गोचर जब