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शब्द । ( २६९) ब्रह्मको लेश नहीं है सो हे कबीर ! कायाके बीर जीवो ! मायाव्रह्मके तुम परे हौं तहांते उठिकै कहे मायाव्रह्मके विन्ननते निकासकै साहबको मिलौ तबहीं तिहारों जनन मरण छूटैगो ॥ ४ ॥ | इतिउन्र्तसवां शब्द समाप्त । | अथ तीसवां शव्द ॥ ३० ॥ भाई रे!दुइ जगदीश कहांते आये कहु कौने भरमाया। अल्लाः राम करीम केशव हारे हजरत नाम धराया ॥ १ ॥ गहना एक कनक ते गहना तामें भाव न दूजा । कहून सुननको दुइ करि थापे यक निमाज यक पूजा॥२॥ वही महादेव वही महम्मद ब्रह्मा आदम कहिये । कोइ हिंदू कोइ तुरुक कहावै एक ज़िमीं पर रहिये ॥३॥ वद किताब पढ़ें वे खुतवा वे मोलना वे पांड़े । विगत विगतकै नाम धरायो यक माटी के भांड़े ॥ ४ ॥ कह कबीर वे दूनौं भूले रामहिं किनहुं न पाया। वे खसिया वे गाय कटावै बादै जन्म अँवाया ॥५॥ | अब यहां यह बर्णन करै हैं कि दूसरो जगदीश नहीं है परमपर पुरुष जे श्रीरामचन्द्र तेई जगदीशहैं । भाई रे ! दुइ जगदीश कहांते आये कहु कौने भरमाया। अल्लाः राम करीम केशव हार हजरत नाम धराया ॥ १॥ गहना एक कन्क्रते गहना तामें भाव न दूजा। कहन सुननको दुइकरि थापे यकनेवाज कपूजा ॥२॥ श्रीकबीरजी कहै हैं कि, हे भाइउ ! दुइजगदीश कहांते आये तोको कौने भरमायो है । अल्ला राम करीम केशव हरि हजरत ये तो सब नामभेद हैं