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बीजक कबीरदास । पातंजल शास्त्रमें योगक्रियाहै सो कायाते होय है ताते अलग कह्यो अब सब मेटिकै है हैं । चारि वेदजेहैं तेई वृक्षहैं छइड शास्त्रजे हैं तेई शाखाहें अठा• रहौपुराण पत्रहैं सो एकलेकहें यहां लगे । गैयागमनकै जातभई कहे प्रवेश कैनातभई सो गैया बड़ी हरहाई है अर्थात् जहां जहां आरोपकियो तौन तौन वह खाय लिया अर्थात् जौन जौन आरोप कियॉहै तौन वाके पेटते बाहर नहीं है भीतरहीहै ॥ ३ ॥ ई सातौ अवरण सातौ नौ औ चौदह भाई। एतिक गैया खाय वढायो गैया तउ न अघाई ॥४॥ ई सातौ ने कहिआये छःचक्र औ सातौ सहस्रार जहां ब्रह्मज्योतिमें जीवको मिलावैहै अरु सातौ आवरणजेहैं पृथ्वी अप तेज वायु आकाश अहंकार महत्तत्त्व अथवा सातौ बार काल अरु नौ खंड जे हैं अरु चौदही भुवन जे हैं। सोई सबनको गैया खाइकै बढाइ डारयो तऊ न अघातभई अर्थात् सब बाणीमय ठहरे ॥ ४ ॥ खूटा में राती है गैया श्वेत सींग हैं भाई। अवरण वरण कछु नहिं वाके भक्ष अभक्षौ खाई ॥५॥ ब्रह्मा विष्णु खोजकै आये शिव सनकादिक भाई। सिद्ध अनंत वहिखोज परे हैं गैया किनहुं न पाई ॥ ६॥ सो वह गैया खूटा जो धोखाव्रह्महै तामें राती है अर्थात् ब्रह्म माया सबालतैहै । अरु वहि गैयाके सींग श्वेत हैं कहे सतोगुणी हैं सोई ब्रह्ममें बांधिबो है। औ अबरण कहे असत् ॐ बरण कहे सव ई वाके कोई नहीं है अर्थात् सत् असत्ते विलक्षणहै अथवा अबरणकहे नहीं है बरण जाके निरक्षर ब्रह्म नाम रूपादिक नहीं है जाके औ वरणकहे अक्षर ब्रह्म जीव ईदोनों नहीं है वाके अर्थात् ईदोनोंते विलक्षणहै । औ भक्ष अभक्षौ खाइहै कहे कर्म करावन लायकहै सो करावैहै औ जोकर्म करावन लायक नहीं है सोऊ कराँवैहै । अर्थात् विद्यारूपते शुभकर्म करावैहै सो वाको शिव सनकादिक ब्रह्मा बिष्णु महेश