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( २६२ ) बीजक कबीरदास । | भाई अद्भुत रूप अनूप कथा है कहीँ तोको पतिआई ।। जहँजहँ देखों तहँ तहँ सोई सबघट रह्यो समाई ॥ १ ॥ जाति करिकै सबजीव एकही हैं तातेजीवनको भाई कह्यो कि, हे भाई जीवो ! वे ले हैं परमपुरुष श्रीरामचन्द्र तिनको अद्भुतरूपहै, अरु वहि रूपकी अनूपकथाहै सो मैं जो वाको दृष्टांत दैके समुझाऊहौं कि,बाको रंग दूर्वा दलकी नाई है, अरसी कुसुमकी नाई, नील कमलकी नाई, तौ येई सबमें भेदपैरै एक एककी तरह नहीं है वहतो मनबचनके परे है। ऐसेनाम रूप लीला धाम सबहै। वाको तौ कैसे समुझाऊकाहेते जोमैं वाको समुझाइकै कहाँ तो कैसे कहो औ जों कहबऊकौं तौ कोई पतिआय कैसे । सो यहितरहको जो याको रूपहै सो जहाँ जहां देखोहौं तहां तहां वह रूप देखायैहै । काहेते कि, सबघटमें समायरह्यो है । यहां सबघटमें समान्यो जोकह्यो ताते चितहू अचितहू में समाइरह्यो यहआयो नो ब्यंग्य पदार्थहै जीव ब्रह्म माया काल कर्म स्वभाव ताहीको सब देखैहैं। औ जो व्यापक पदार्थ है ताकी कोई नहीं देखे है । जो चितहू अचितमें जो कहो वही धोखा ब्रह्मको तुमढू कहतेही जो सर्वत्र फैलि रह्यो है तौ वाको कोईनहीं कहतेहैं; काहेते कि, अद्वैतबादी है हैं कि, सब पदार्थं वही ब्रह्मही है। वाते भिन्न दूसरो पदार्थ नहीं है औ हम कहेहैं कि, सबपदार्थ चित् अचित् रूपते व्याप्य है औ हमारो साहब सर्वत्र व्यापक है सो जाको बिश्वास होइ ताको वै साहब साकेत निवासी परम पुरुष श्रीरामचन्द्र सहजही प्रकट है जाय । सो जो मैं कहौहौं ताको नहीं प्रतीत करै हैं। चित् जो है जीव औ ब्रह्म ताहूमें श्रीरामचन्द्र व्यापक हैं तामेंप्रमाण ॥ * योवैश्ररािमचन्द्रोभगवान बैतपरमानन्दात्मा यः परब्रह्मेतिरामतापिन्याम् ॥ जीवहूमें व्यापक हैं तामें प्रमाण ॥ “यआत्मनितिष्ठन् यआत्मानं वेदयस्यात्माशरीरमिति ॥ मायादिक सबमें व्यापक हैं तामेंप्रमाण ॥. “यस्यभासासर्वमिदंविभातीतिश्रुतिः ॥ १ ॥ लछि विनु सुख दरिद्र बिनु दुख है नींद विना सुख सोवै । जस विनु ज्योति रूप विन आशिक रतन विहूना रोवै॥२॥