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(२५४) बीजक कबीरदास । तब शिष्यनके पढ़ाइवेको बरदाको कह्या तबबरदा शिष्यनको पढ़ाया है । औं . ने साहबकी सामर्थ्यते ऎसी सामर्थ्य उनके दासन द्वैगई कि, वोई अनहद वाणीको बोलै हैं बाकी हद्द नहीं है ॥ ४ ॥ वाँधि अकाश पताल पठावै शेषस्वर्ग परराजै ।। कहे कवीर रामहै राजा जोकुछ करे सो छाजै ॥६॥ औ आकाश जो है आकाशवत् ब्रह्म तौनेको जोमाने है कि वह ब्रह्म मैंहीं हौं ताकेा साहब अपनो ज्ञान कराइकै धोखा ज्ञानको बँधि कै पतालमें पॅटै दैइहै । अर्थात् तेहि जीवको मूलज्ञान निर्मूलई करि देयहै । जैसे लोकमें या बात कहै हैं कि, या खनिकै गाड़देव ऐसे गाड़दियो फिरि वा अज्ञानको अंकुर नहीं होयहै । औ शेष कहे भगवत् शेजा है जीव सो जे साहबकी सामर्थ्यते स्वर्गादिकन के परे जोहै साहबको लोक तहाँ राजै हैं । “स्वर्गपदकोः अर्थ जो दुःखते भिन्न स्थान होयहै सो कहावै स्वर्ग' । औ जो लोक प्रकाश ब्रह्म ताहूते परे जो साहब तहाँराजैहै दुःखरहितस्थानको स्वर्ग कहै हैं तामें प्रमाण।“यन्नदुःखेनसंभिन्नं नचग्रस्तमनंतरम् । अभिलाषापनीतंच तत्पदं स्वःपदास्पदम्' इति ॥ सो कबीरजी है हैं कि यह अघटित घटना सामर्थ्य परम परपुरुष श्रीरामचन्द्रही हैं वे राजा हैं वे जो कुछ करें सो सव छ।जैहै चाहे रंकको राजा करें चाहे राजाको रंक करें चाहे लौंगमें फल लगावें चाहे चंदनमें फूल फुलाय देयँ चाहे मछरीका बनमें रमावै चाहे सिंहको समुद्र में रमानैं चाहे रेंडारूखको चंदनकरें. चाहै अंधाको तीनउ लोक देखाय देयँ चाहे पंगुको सुमेरु सँघायदेयँ चाहे गुंगाको ज्ञान कहवायदेई.चाहे आकाशको बँधिके पातालैपैठावें चाहे पातालवासी ने शेष तिनको स्वर्गपरराखें, या सामथ्र्य उनमें श्रीरामचंद्र तौराजाहैं तामेंप्रमाण ॥‘रानाधिराजस्सर्वेषां रामवनसंशयः ॥औ उनहींकी भयते सूर्य चन्द्रमा अवसरमॅउये हैं। औमृत्यु जबसमय आवैहै तबखायहै तामें प्रमाण॥ ययादाति वातोयं सूर्यस्तपतियङ्ग्यात् ॥ वर्षतांद्रा हत्यग्निर्मृत्युश्चरति पंचमः ॥ इतिश्रीमद्भागवते ॥५॥ इति तेईसवां शब्द समाप्त |